आज भारतीय नव संवत्सर का प्रथम दिवस है । इसे गुड़ी पड़वाँ के नाम से भी जाना जाता है । चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से ही हमारा नया वर्ष आरंभ होता है । आज से विक्रम संवत 2068 शुरू हो गया है । दुर्भाग्य से इन बातोँ की जानकारी हमारे देश की नई पीढ़ी को नहीँ है । वास्तव मेँ इसमेँ नई पीढ़ी का दोष नहीँ है । हमारी पारिवारिक परम्पराओँ से अब संस्कृति और संस्कार धीरे - धीरे लुप्त होते जा रहे हैँ । पश्चिम की अंधी नकल के कारण हमारी भारतीयता की पहचान संकट मेँ है । इसे बचाना और सुरक्षित रखना ही जरूरी नहीँ है अपितु इसका संरक्षण , पोषण और पल्लवन भी परम आवश्यक है वरना हमारा अस्तित्व इतिहास का विषय बन जाएगा । आज की पीढ़ी को पश्चिम से आयातित न्यू इयर्स डे , फ्रेँड्स डे , मदर्स डे , फादर्स डे और वेलेण्टाइन्स डे तो मालूम हैँ पर वर्ष प्रतिपदा के बारे मेँ कोई जानकारी नहीँ है । पूर्व मेँ परिवार की व्यवस्थाएँ ही कुछ इस तरह की होती थीँ भारतीय संस्कार और परम्पराओँ की जानकारियाँ स्वाभाविक रूप से अगली पीढ़ी को हस्तान्तरित हो जाया करती थीँ लेकिन परिवारोँ के विखण्डन से इस सिलसिले को आघात पहुँचा है । खेद का विषय है कि वर्तमान मेँ हमारा राष्ट्रीय समाज अपने गौरवशाली अतीत को भूलकर सिँह के उस छौने की तरह आत्मविस्मृत हो गया है जो अपने झुण्ड से बिछड़ने के कारण भेड़ोँ के बीच पला और दहाड़ना भूलकर मिमियाना सीख गया और शिकार करना छोड़कर वनस्पति खाने लगा था । आज आवश्यकता है कि हम अपने खोए हुए आत्मगौरव को पहचानकर उसकी पुनर्स्थापना करेँ ।
सभी सुधी पाठकोँ , शुभ - चिन्तकोँ और मित्रोँ को नव वर्ष की हार्दिक बधाई एवं शुभ - कामनाएँ । नया साल हम सभी के जीवन मेँ सुख , समृद्धि और प्रसन्नता लाए , यही परमपिता परमेश्वर के श्री चरणोँ भेँ प्रार्थना है ।
इति शुभम ।
- रमेश दीक्षित , टिमरनी
रविवार, 3 अप्रैल 2011
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