शुक्रवार, 28 अक्तूबर 2011
हिन्दी साहित्य की व्यंग्य परम्परा का एक देदीप्यमान नक्षत्र आज अस्त हो गया । अप्रतिम व्यंग्यकार श्रीलाल शुक्ल अब हमारे बीच नहीँ रहे । अपने कालजयी उपन्यास ' राग दरबारी ' के लिए हिन्दी जगत सदैव उनका ऋणी रहेगा । अपने यशस्वी जीवन मेँ 86 वसन्त देख चुके श्रीलाल शुक्ल उत्तर प्रदेश की उच्च प्रशासनिक सेवा के अधिकारी थे । विभिन्न पदोँ पर रहते हुए उन्होँने शासन की कार्यप्रणाली और आम आदमी की तकलीफोँ को नजदीक से अनुभव किया था । इसके सिवा कस्बाई राजनीति और समाज के हर परिवेश पर उनकी गहरी पकड़ थी । ' राग दरबारी ' का एक - एक पात्र आज फिर से आँखोँ के सामने विचरण करने लगा । कई बार पढ़ने के बाद भी यह उपन्यास बार - बार पढ़ने की इच्छा होती है । मैँने अपने अनगिनत मित्रोँ को भी यह पढ़वाया है और वे सभी श्रीलाल शुक्ल के मुरीद हो गए । साहित्य अकादमी , पद्म विभूषण और हाल ही मेँ भारतीय ज्ञानपीठ पुरुस्कार से सम्मानित श्रीलाल शुक्ल सभी हिन्दी प्रेमियोँ को बहुत याद आएँगे । उन्हेँ टिमरनी के सभी कलम जीवियोँ की ओर से मैँ श्रद्धा सुमन समर्पित करता हूँ । - रमेश दीक्षित , टिमरनी
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