आम जनता मेँ ये कौतूहल हुआ ।
आज भी होगा वही जो कल हुआ ।
एक ऐसी चीज़ है इस देश मेँ ,
मिल गई जिसको वही पागल हुआ ।
पाकर सूरज की तपन पोखर का पानी ,
आसमाँ छूने लगा , बादल हुआ ।
किस तरह से दर्द को हम कम करेँ ,
किरकिरी जब आँख का काजल हुआ ।
काम पशुओँ के किए हैँ आदमी ने ,
लग रहा है ये शहर जंगल हुआ ।
बुधवार, 12 अगस्त 2009
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