सोमवार, 14 दिसंबर 2009

राज्योँ का पुनर्गठन

विकास और प्रशासनिक दृष्टि से छोटे राज्योँ की परिकल्पना को गलत नहीँ कहा जा सकता लेकिन इसके लिए जरूरत है ईमानदार प्रयत्नोँ की जिनका हमारे देश मेँ नि:तान्त अभाव है । वर्तमान मेँ उठाई जा रही कुछ छोटे राज्योँ की माँग के पीछे विकास की भावना कम और राजनीतिक स्वार्थ अधिक है । राष्ट्रीय अखण्डता की दृष्टि से यदि देखा जाए तो भाषावार प्रान्तोँ की रचना उचित नहीँ है । प्रशासनिक सुविधा के लिए पूरे देश को भौगोलिक आधार पर छोटी - छोटी इकाईयोँ मेँ बाँटा जाना अधिक उपयुक्त और लाभकारी सिद्ध हो सकता था लेकिन तत्कालीन नेतृत्व की अदूरदर्शिता , राष्ट्रीय सोच का अभाव और स्वार्थपूर्ति के चलते यह संभव नहीँ हो सका और परिणामस्वरूप नये राज्योँ की माँग का एक अन्तहीन सिलसिला उसी समय से शुरू हो गया । राज्योँ के रूप मेँ ये छोटी इकाईयाँ भारत जैसे गरीब और विकासशील देश के लिए सफेद हाथी ही सिद्ध होँगे विकास तो दूर की बात है । और अन्तत: इनका आर्थिक बोझ महँगाई और भ्रष्टाचार के बोझ तले दब रही असहाय जनता पर ही पड़ेगा । तेलंगाना अब काँग्रेस और सरकार दोनोँ के लिए गले की हड्डी बन गया है । सबको सन्मति दे भगवान ।
- रमेश दीक्षित , टिमरनी