शनिवार, 12 फ़रवरी 2011

कड़वा सच

सच न केवल कड़वा होता है अपितु दण्डनीय भी होता है । राजस्थान के एक मंत्री को ऐसे ही कड़वे सच का दण्ड हाल ही मेँ भुगतना पड़ा है । यदि गहराई से चिन्तन किया जाए तो हमारी दोषपूर्ण राजनैतिक प्रणाली के कारण ही चाटुकारिता और व्यक्तिनिष्ठा की लज्जाजनक परम्परा का प्रचलन बढ़ा है । इसी के बल पर अनेक लोगोँ ने सत्ता सुन्दरी का सुख भोगा है । आपातकाल के समय देवकान्त बरुआ , हरिदेव जोशी , ज्ञानी जैलसिँह और नारायणदत्त तिवारी जैसे नेताओँ ने चापलूसी की सारी हदेँ पार कर दी थीँ । यही परम्परा न्यूनाधिक स्वरूप मेँ लगभग सभी राजनैतिक दलोँ मेँ अपना स्थान बना चुकी है परिणाम स्वरूप अयोग्य , रीढ़विहीन और स्वाभिमानशून्य नेताओँ की भरमार हो गई है तथा श्रेष्ठ , राष्ट्रभक्त , योग्य और ईमानदार लोग नेपथ्य मेँ चले गए हैँ । यही कारण है कि आए दिन लाखोँ करोड़ रुपयोँ के घोटाले सामने आ रहे हैँ , भ्रष्टाचार दिन - दूना और रात चौगुना बढ़ रहा है , अपराधोँ की बाढ़ आई हुई है और देश की सीमाएँ असुरक्षित हो गई हैँ , सर्वोच्च न्यायालय सरकार को प्रतिदिन किसी न किसी बात पर लताड़ लगा रहा है और सत्ता मेँ बैठे लोग निर्लज्जता का भौँडा प्रदर्शन कर रहे हैँ । जनता मेँ महँगाई से हाहाकार मच रहा है लेकिन किसी को चिन्ता नहीँ है । संविधान के जिस ढाँचे के अन्तर्गत यह सब हो रहा है उस संविधान की जो विशेषताएँ देश के विद्यालयोँ मेँ भावी पीढ़ी को पढ़ाई जाती हैँ उनमेँ इसका लचीलापन भी है । मुझे लगता है कि संविधान का यही लचीलापन उसका सबसे बड़ा दोष बन चुका है । उसमेँ मनमाने ढँग से दलीय हितोँ के लिए लगभग सौ संशोधन किए जा चुके हैँ । वास्तव मेँ अब समय आ गया है कि अँग्रेजोँ के संविधान की नकल के स्थान पर एक शुद्ध भारतीय संविधान की रचना की जाए जो इस सड़ गल चुकी व्यवस्था मेँ आमूलचूल परिवर्तन ला सके । यद्यपि इसकी आशा शून्य से भी कम है । लेकिन यह भी तय है कि यदि ऐसा नहीँ हुआ तो जनता मेँ विद्रोह फूटने की पूरी संभावना है तब जनता हमारे नेताओँ को दौड़ा - दौड़ा कर मारेगी ।
- रमेश दीक्षित , टिमरनी ।