सोमवार, 23 अगस्त 2010

रक्षा बन्धन

समस्त सुधी पाठकोँ , भाइयोँ - बहनोँ , मित्रोँ , शुभ - चिन्तकोँ और दुनिया भर मेँ फैले देशवासियोँ को रक्षा बन्धन पर्व की हार्दिक बधाई एवं ढेर सारी शुभ - कामनाएँ । यह त्यौहार हम सभी के हृदयोँ मेँ राष्ट्रभक्ति , एकता और बन्धुत्व की भावनाओँ का स्फुरण करे , यही ईश्वर से प्रार्थना है ।
शुभेच्छु
रमेश दीक्षित , टिमरनी

रविवार, 15 अगस्त 2010

प्रसंगवश : राष्ट्रीय ध्वज

तिरंगा हमारा राष्ट्रीय ध्वज है । यह हमारे राष्ट्र का गौरवशाली प्रतीक है । हमारे जीवन मेँ राष्ट्र का सर्वोच्च स्थान है या होना चाहिए । कोई भी व्यक्ति चाहे वह कितना भी बड़ा या महान क्योँ न हो राष्ट्र से बड़ा या राष्ट्र से ऊपर नहीँ हो सकता और इसीलिए वह राष्ट्र ध्वज से भी बड़ा या उससे ऊपर नहीँ हो सकता । प्रत्येक देशभक्त भारतीय को तिरंगे का सम्मान श्रद्धापूर्वक और भक्तिभाव से करना ही चाहिए । इसका अनादर या अपमान करने वाले को देशद्रोही मानना चाहिए और देशद्रोह की सजा सिर्फ़ और सिर्फ़ मौत होनी चाहिए ।
अब थोड़ी चर्चा इसके कभी कभार होने वाले बेजा इस्तेमाल की भी कर लेना आज समीचीन होगा । गुलामी की तुच्छ और हेय मानसिकता के चलते हमारे तत्कालीन रीढ़विहीन नेतृत्व ने राष्ट्रीय ध्वज के लिए विदेशी नियम स्वीकार किए हैँ जो किसी भी स्वाभिमानी देश मेँ उचित नहीँ माने जा सकते । लेकिन हमारे देश मेँ कुछ लोगोँ को राष्ट्र से भी ऊपर मानने की प्रवृत्ति है । इसी कुत्सित और राष्ट्र के लिए अपमानजनक एवं लज्जाजनक प्रवृत्ति के चलते नेताओँ की मृत्यु होने पर राष्ट्रीय ध्वज को झुका दिया जाता है । इतना ही नहीँ तो राष्ट्र ध्वज को उनके शव पर कफ़न की तरह लपेटा जाता है । जैसा कि मैँ पहले कह चुका हूँ कोई भी व्यक्ति चाहे वह कितना ही बड़ा या महान क्योँ न हो राष्ट्र या राष्ट्रीय ध्वज से ऊपर नहीँ हो सकता । तब लाख टके का सवाल यह उठता है कि राष्ट्रीय ध्वज के सम्मान मेँ व्यक्ति झुके या फिर व्यक्ति के सम्मान मेँ राष्ट्रीय ध्वज झुके ? और फिर राष्ट्रीय ध्वज को किसी के शव पर कफ़न की तरह लपेटना किसी स्वाभिमानी राष्ट्र मेँ कैसे स्वीकार्य हो सकता है । परन्तु लगता है हमारे देश मेँ राष्ट्र का स्थान सबसे ऊपर नहीँ है । चाटुकारिता के कारण व्यक्ति राष्ट्र से भी ऊपर माना जाने लगा है । राष्ट्रीय भावनाएँ साल मेँ केवल दो ही दिन जोर मारती हैँ एक 15 अगस्त को और दूसरे 26 जनवरी को । इन दो अवसरोँ पर कुछ देशभक्तिपूर्ण गीत बजाकर हम अपनी राष्ट्रभक्ति का इज़हार कर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेते हैँ । हमारे राष्ट्र जीवन मेँ इस स्थिति मेँ परिवर्तन आना ही चाहिए । हमारे सर्वोच्च न्यायालय मेँ राष्ट्र ध्वज के इस प्रकार गलत इस्तेमाल पर विचार कर नियमोँ मेँ कुछ जरूरी परिवर्तन करना चाहिए । या फिर इस अत्यंत संवेदनशील मामले पर सर्वोच्च न्यायालय मेँ याचिका दायर की जानी चाहिए ताकि राष्ट्र के आत्मसम्मान की रक्षा हो सके ।
- रमेश दीक्षत , टिमरनी

रविवार, 8 अगस्त 2010

पिछली पोस्ट का शेष भाग

इस बारे मेँ मनुष्य की चालाक वृत्ति का एक रोचक उदाहरण देते हुए श्री होसबले ने बताया कि एक आदमी के पास एक घोड़ा था जिसे वह बहुत चाहता था । एक दिन वह घोड़ा बीमार पड़ गया । बहुत उपाय किए पर घोड़ा अच्छा नहीँ हुआ । अन्ततोगत्वा वह भगवान के मन्दिर मेँ गया और मन्नत माँगी कि यदि घोड़ा ठीक हो गया तो मैँ इसे बेच दूँगा और जो भी रकम मिलेगी उसे मन्दिर मेँ दान कर दूँगा । भगवान की कृपा से कुछ दिनोँ मेँ घोड़ा ठीक हो गया । अब उसे भगवान के सामने की हुई अपनी मन्नत याद आई । तब उसने कुछ सोचकर घोड़े को बेचने की घोषणा कर दी और उसकी कीमत रखी पाँच रुपये । यह सुनकर कई ग्राहक आ गए । उसने कहा कि घोड़ा तो पाँच रुपये का है पर एक शर्त है कि घोड़ा खरीदने वाले को घोड़े के साथ एक बिल्ली भी खरीदनी पड़ेगी जिसकी कीमत है दस हजार रुपये । इस प्रकार घोड़े को बेचने से मिले पाँच रुपये तो उसने मन्दिर मेँ चढ़ा दिए और दस हजार रुपये अपनी जेब मेँ रख लिए ।
उन्होँने कहा कि लोगोँ को संस्कार , सेवा , त्याग , समर्पण और देशभक्ति जैसे सनातन जीवन मूल्योँ को बढ़ावा देना चाहिए जो कि आज के समय मेँ कुछ कम हो गए हैँ अथवा बदल गए हैँ । आज देश विरोधी ताकतेँ सक्रिय हैँ , समाज मेँ भ्रष्टाचार व्याप्त है और छुआछूत की समस्या है । इन सब का कारण है ईमानदार नेतृत्व का अभाव । आज मनुष्य को ठीक करने की समस्या है । मनुष्य ठीक होगा तो देश भी अपने आप ठीक हो जाएगा । इसलिए आज संघ कार्य के प्रकाश को सब दूर तेज गति से फैलाने की आवश्यकता है । यह न केवल राष्ट्र को आगे बढ़ाने के लिए आवश्यक है अपितु मानवता की भलाई के लिए भी जरूरी है ।
- रमेश दीक्षित , टिमरनी

संघ का कार्य व्यक्ति निर्माण

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह श्री दत्तात्रेय होसबले पिछले दिनोँ अपने दो दिवसीय प्रवास पर टिमरनी पधारे थे । श्री भाऊ साहब भुस्कुटे का गाँव होने के कारण देश भर के संघ कार्यकर्ताओँ के मन मेँ टिमरनी के लिए एक तीर्थ की तरह श्रद्धा का भाव रहता है और वे यहाँ आने का कोई भी अवसर गँवाना नहीँ चाहते । श्री होसबले की उपस्थिति का लाभ लेने के लिए यहाँ के सरस्वती शिशु मन्दिर के सभागार मेँ एक बौद्धिक वर्ग का आयोजन किया गया था जिसमेँ टिमरनी और आसपास के संघ स्वयंसेवकोँ के साथ ही बड़ी संख्या मेँ आम जन भी उपस्थित थे । समूचा सभागार जिज्ञासु श्रोताओँ से खचाखच भरा हुआ था । श्री होसबले ने अपने उद्‌बोधन मेँ कहा कि आज देश मेँ ही नहीँ अपितु विश्व भर मेँ संघ का कार्य कोई अपरिचित कार्य नहीँ है । दुनिया भर के लोगोँ के मन मेँ इस के लिए कौतूहल है । विभिन्न देशोँ मेँ गए संघ के स्वयंसेवक वहाँ रह रहे हिन्दुओँ तथा अपनी मातृभूमि के लिए कार्य करते हैँ । जहाँ तक समाज का विस्तार है वहाँ तक संघ कार्य का भी विस्तार है । उन्होँने कहा कि सेकुलरिज़्म का विचार भारत की स्वाभाविक प्रवृत्ति के अनुकूल नहीँ है । हिन्दुत्व का विचार इससे भी श्रेष्ठ विचार है । उन्होँने कहा कि टाइम्स ऑफ इण्डिया के सम्पादक स्वर्गीय गिरिलाल जैन के लेखोँ मेँ हमेशा संघ के प्रति असहमति का भाव दिखाई देता था लेकिन जब उन्होँने संघ को निकट से समझा तो संघ के प्रति उनकी धारणा मेँ आमूलचूल परिवर्तन आ गया । इसी तरह लोकनायक जयप्रकाश नारायण पहले मार्क्सवादी थे फिर गाँधी विचार से प्रभावित होकर समाजवाद की ओर झुके तथा बाद मेँ सर्वोदय का काम किया । संघ के विचारोँ से उनकी भी असहमति रहती थी लेकिन जब उन्होँने संघ कार्य को नज़दीक से देखा समझा तो कहा कि संघ एक क्रान्तिकारी संगठन है । उन्होँने तो यहाँ तक कहा कि यदि संघ फासिस्ट है तो मैँ भी फासिस्ट हूँ । आज संघ के स्वयंसेवक समाज जीवन के विभिन्न क्षेत्रोँ मेँ कार्य कर रहे हैँ । आज सर्वत्र संघ कार्योँ की चर्चा होती है और आलोचना भी होती है जिसका अर्थ यही है कि इसका प्रभाव बढ़ रहा है । श्री होसबले ने आगे कहा कि संघ की आज तक की सफलता के चार प्रमुख कारण हैँ । पहला कारण है हिन्दुत्व का विचार जो कि भारत की मिट्टी का विचार है , यहाँ की संस्कृति और परम्परा का विचार है । दूसरा कारण है संघ का सभी स्तरोँ पर कुशल नेतृत्व । तीसरा कारण है संघ की कार्य पद्धति । नित्य शाखा के माध्यम से अधिक से अधिक लोगोँ को जोड़कर व्यक्ति निर्माण का कार्य करना क्योँकि व्यक्ति निर्माण से ही समाज और राष्ट्र मेँ परिवर्तन आएगा । संघ की सफलता का चौथा कारण है उपरोक्त तीनोँ कारणोँ के कारण निकले संघ के समर्पित कार्यकर्ता जो यह मानते हैँ कि संघ मेरा है और मैँ संघ का हूँ । इन्हीँ चारोँ कारणोँ से आज समाज मेँ संघ प्रभावी है । संघ ने हिन्दुत्व का विचार किसी वाद के रूप मेँ समाज के सामने नहीँ रखा है । हिन्दुत्व का विचार इस देश मेँ कोई नया विचार नहीँ है अपितु यह तो अनादिकाल से इस देश का विचार रहा है । हमारे ऋषियोँ , मुनियोँ , संतोँ , मनीषियोँ और पूर्वजोँ ने जो जीवन पद्धति विकसित की है वह सनातन परम्परा ही संघ का विचार है । संघ ने युगानुकूल सन्दर्भ मेँ इस विचार को समाज के सामने रखा है । यह नित्य नूतन और चिर पुरातन अर्थात सनातन विचार है । उन्होँने कहा कि संघ कोई हिन्दू राष्ट्र का निर्माण नहीँ कर रहा है क्योँकि यह हिन्दू राष्ट्र तो है ही और जो पहले से है उसका निर्माण भला कैसे किया जा सकता है ? लोग हिन्दुत्व के विचारोँ का देश मेँ पालन करते ही हैँ । उन्होँने कहा कि भारत सरकार ने जिस ' सत्य मेव जयते ' को अपने ध्येय वाक्य के रूप मेँ स्वीकार किया है वह हमारे ऋग्वेद से लिया गया है । भारतीय संसद और उच्चतम न्यायालय की दीवारोँ पर जो सूत्र लिखे गए हैँ वे सभी हमारे वेदोँ और उपनिषदोँ से ही लिए गए हैँ । भारतीय जीवन बीमा निगम , दूरदर्शन , एन.सी.ई.आर.टी. तथा देश के लगभग सभी विश्वविद्यालयोँ और शिक्षा संस्थाओँ के ध्येय वाक्य भी हमारे विभिन्न हिन्दू ग्रंथोँ से ही लिए गए हैँ । यह हमारे देश की परम्पराओँ और मुख्य धारा से जुड़ाव के कारण ही है । हिन्दू जीवन पद्धति की स्वाभाविक हमारे जीवन मेँ व्याप्त हैँ । सारांश यह है कि हम इस देश को हिन्दू राष्ट्र के रूप मेँ ही स्वीकार करते हैँ । इन्हीँ बुनियादी विचारोँ पर संघ का कार्य चलता है । इन विचारोँ को व्यवहार मेँ लाने का कार्य संघ करता है । विचार पुरातन है और पद्धति नूतन है । श्री होसबले ने आगे कहा कि विभिन्न आधारोँ पर भेद करने की आदत हमारे हिन्दू समाज की सबसे बड़ी कमजोरी है । हमारी इस आदत को अँग्रेजोँ ने खूब बढ़ावा दिया । उन्होँने कहा कि हमारे शाखा तंत्र सबको जोड़ने का कार्य करता है । एकात्मता हमारे लिए केवल बौद्धिक कसरत नहीँ है अपितु संघ की शाखाओँ मेँ यह प्रत्यक्ष दिखाई देता है । समय की कसौटी पर संघ की कार्य पद्धति खरी सिद्ध हुई है । समरसता और एकता का भाव जगाने का कार्य संघ की शाखाओँ मेँ होता है । व्यक्ति निर्माण का संघ का विचार भी भारतीय परम्परा का ही अंग है , केवल तंत्र नया है । कैसे रहना , सबके साथ कैसा व्यवहार करना , ये सब नर को नारायण बनाने के ही उपाय हैँ । मनुष्य को परिपूर्ण बनाना ही हमारा कार्य है क्योँकि इसके बिना हमारा समाज ऊपर नहीँ उठ सकता । उन्होँने कहा कि कानून से मनुष्य मेँ परिवर्तन नहीँ हो सकता । कानून से मनुष्य डरता है और फिर उससे बचने के उपाय सोचता है । आज जब इंसान भगवान तक को धोखा देने से बाज नहीँ आता तब कानून से बचना उसके लिए कौन सा मुश्किल काम है ? इस बारे मेँ ...शेष अगली बार

शुक्रवार, 6 अगस्त 2010

सुभाषित परिमलः

दिनांक 4 अगस्त 2010 बुधवार को टिमरनी के सरस्वती शिशु मन्दिर के श्रद्धेय भाऊ साहब भुस्कुटे सभागृह मेँ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह श्री दत्तात्रेय होसबले ने संस्कृत सुभाषितोँ के एक वृहद संकलन ' सुभाषित परिमलः ' का समारोहपूर्वक विमोचन किया । इस अवसर पर उन्होँने इस पुस्तक के लिए संघ के पूज्य सरसंघचालक माननीय मोहनराव जी भागवत द्वारा संस्कृत मेँ प्रेषित शुभ - कामना सन्देश का वाचन भी किया । श्री होसबले ने ' सुभाषित परिमल: ' के संकलनकर्ता और अनुवादक तथा संस्कृत के विद्वान श्री रामचन्द्र विष्णुपंत पातोण्डीकर उपाख्य रामभाऊ पातोण्डीकर को शाल और श्रीफल भेँटकर सम्मानित किया । 15 मार्च 1931 को जन्मे श्री रामभाऊ पातोण्डीकर संस्कृत विषय से एम.ए. , बी.टी. और हिन्दी साहित्य विशारद हैँ । वे बाल्यकाल से ही संघ के स्वयंसेवक हैँ । 1949 से 1955 तक प्रतिकूलता के समय मेँ वे संघ के प्रचारक रहे । एक योग्य शिक्षक के रूप मेँ आपने छात्रोँ की अनेक पीढ़ियोँ को सुसंस्कृत बनाने का स्तुत्य कार्य किया । 1991 मेँ शासकीय सेवा से निवृत्त होने के बाद उन्होँने भोपाल मेँ विद्या भारती के आवासीय विद्यालय शारदा विहार मेँ मार्गदर्शक के रूप मेँ अपनी सेवाएँ दीँ । सन् 1991 से 2003 तक वे विद्या भारती और संस्कृत भारती , धुले ( महाराष्ट्र ) के कार्य मेँ सहयोगी रहे । इस विमोचन कार्यक्रम मेँ अपने संक्षिप्त उद्‌बोधन मेँ श्री रामभाऊ पातोण्डीकर ने ' सुभाषित परिमलः ' की पृष्ठभूमि की चर्चा करते हुए अपने संस्कृत अनुराग के लिए श्रद्धेय भाऊ साहब भुस्कुटे को अपना प्रेरणास्रोत और गुरू बताया । उन्होँने कहा कि मुझ पर भाऊ साहब जी के अनन्त उपकार हैँ और यह पुस्तक उन्हीँ की कृपा का परिणाम है । संस्कृत के सुभाषितोँ की चर्चा करते हुए उन्होँने कहा कि सुभाषित कठिनाईयोँ के समय हमारा उचित मार्गदर्शन करते हैँ । इस बारे मेँ उन्होँने स्वयं का एक अनुभव भी सुनाया । उन्होँने कहा कि 1980 मेँ उनका स्थानान्तरण बुरहानपुर से कोई हजार मील सुदूर छत्तीसगढ़ के एक छोटे से गाँव मेँ कर दिया गया । तब कुछ मित्रोँ ने कहा कि फलाँ मंत्री या फलाँ नेता के पास जाकर तबादला रद्द कराने के लिए प्रार्थना करना चाहिए । ऐसे कठिन समय मेँ निम्नलिखित सुभाषित ने मेरा मार्गदर्शन किया ।
'' रे रे चातक सावधानमनसा मित्र क्षणं श्रूयतताम । अम्बोधाः बहवोऽपि सन्ति गगने सर्वेऽपि नैतादृशाः ॥ केचिद्‌ वृष्टिभिरार्द्रयन्ति धरणीँ गर्जन्ति केचिदवृथा । यं यं पश्यसि तस्य तस्य पुरतो मा ब्रूहि दीनं वचः ॥
अर्थात - रे मित्र चातक ! सावधान चित्त से जरा एक क्षण मेरी बात सुनो । आकाश मेँ बादल तो बहुत इकट्ठा हो गए हैँ पर वे सब एक जैसे नहीँ । उनमेँ से कुछ अपनी जलवृष्टि से धरती को सराबोर कर देते हैँ तो कुछ व्यर्थ ही गर्जना करते रहते हैँ । तब जिस किसी को तुम देखो उसी के सामने गिड़गिड़ाना बंद करो , सभी से याचना मत करो ।
इस अवसर पर श्री होसबले जी ने ' सुभाषित परिमलः ' के सम्पादक और शासकीय राज्य स्तरीय विधि महाविद्यालय भोपाल के प्राध्यापक डॉ. विश्वास चौहान को भी शाल व श्रीफल भेँट कर सम्मानित किया । श्रद्धेय भाऊ साहब भुस्कुटे स्मृति व्याख्यानमाला समिति की ओर से श्री रामभाऊ पातोण्डीकर को एक अभिनन्दन पत्र भेँट किया गया जिसका वाचन श्री रमेश दीक्षित ने किया । निश्चित रूप से
' सुभाषित परिमलः ' संस्कृत अनुरागियोँ के लिए अत्यंत उपयोगी पुस्तक सिद्ध होगी । 30 रुपये की सहयोग राशि पुस्तक के महत्व को देखते हुए कम ही जान पड़ती है । पुस्तक मेँ लगभग 250 सुभाषित संकलित हैँ जिनके हिन्दी अर्थ भी साथ ही दिए गए हैँ । पुस्तक का प्रकाशन टिमरनी की श्रद्धेय भाऊ साहब भुस्कुटे स्मृति व्याख्यानमाला समिति द्वारा किया गया है । पुस्तक प्राप्त करने के इच्छुक निम्नलिखित पतोँ पर सम्पर्क कर सकते हैँ ।
* श्री प्रकाश सोलापुरकर , सरस्वती उ.मा. आवासीय विद्यालय , शारदा विहार परिसर , केरवा बाँध मार्ग , भोपाल ( म.प्र.) दूरभाष-9425029512 * डॉ. अतुल गोविन्द भुस्कुटे गढ़ी , टिमरनी , जिला - हरदा ( म.प्र.)
दूरभाष -
07573-23 0283
* बी/9 , स्प्रिँग फिल्ड टॉवर वीर सावरकर नगर, गंगापुर मार्ग , नासिक , पिन-422093
दूरभाष -
0253-2342168
- रमेश दीक्षित , टिमरनी