शनिवार, 27 मार्च 2010

तिमिर हरणी - भाग 5

इस लेखमाला के चौथे भाग के बारे मेँ एक अनाम पाठक ने मुझे ई मेल भेजते हुए लिखा है कि न तो मैँ टिमरनी के बारे मेँ कुछ जानता हूँ और न ही हंसकुमार जी के बारे मेँ , पर आपका लेख पढ़कर यह मालूम हुआ कि पहले हंसकुमार जी जैसे लोग भी होते थे । उन्होँने ठीक ही लिखा है क्योँकि आजकल नि:स्वार्थ समाजसेवी और परोपकारी लोग दुर्लभ हैँ । उन सज्जन ने यह अनुमान भी लगाया है कि हंसकुमार जी का घर भी आलीशान रहा होगा । उन्होँने मुझसे यह आग्रह भी किया है कि मैँ अपने इस ब्लॉग मेँ उनके घर का चित्र भी लगाऊँ । पर मुझे खेद है कि मैँ उनके इस अनुरोध को पूरा नहीँ कर पा रहा हूँ । इसका एक कारण तो यह है कि वे आगरा के निवासी थे और संभवत: उनका सम्बन्ध पंजाब से था । दूसरा कारण यह है कि उन्होँने टिमरनी मेँ अपना कोई घर नहीँ बनाया था । मैँने सुना है कि वे यहाँ रेल्वे स्टेशन के पास स्थित राजा बरारी एस्टेट के परिसर मेँ एक छोटे से आवास मेँ रहा करते थे । ये तमाम बातेँ मैँने अपने ताऊजी स्व. श्री राधेलाल दीक्षित और टिमरनी के अन्य बुज़ुर्ग़ोँ से सुनी हैँ । मेरे ताऊजी के साथ हंसकुमार जी के बड़े मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध थे । हमारे संयुक्त परिवार मेँ हमारे एक काकाजी श्री कुञ्जीलाल दीक्षित थे । हम सभी परिजन उन्हेँ अण्णा कहते थे । बचपन मेँ भयंकर चेचक निकलने के कारण अण्णा गूँगे और बहरे हो गए थे । अण्णा गूँगे - बहरे अवश्य थे लेकिन अपने हाथोँ के इशारोँ और हाव - भाव से अभिव्यक्ति की विलक्षण क्षमता उनमेँ थी । संवेदनशील हंसकुमार जी जब भी अण्णा को देखते थे तो उन्हेँ बहुत दु:ख होता था । इस श्रृंखला के पिछले भाग मेँ मैँने लिखा था कि हंसकुमार जी का अँग्रेजोँ और देश की तत्कालीन नामी गिरामी हस्तियोँ से अच्छा परिचय था । इसी तरह बम्बई के कुछ प्रसिद्ध डॉक्टरोँ को भी वे जानते थे । वे अण्णा को लेकर बम्बई गए और वहाँ उनका सभी प्रकार का परीक्षण करवाया । लगभग सभी डॉक्टरोँ ने अण्णा के इलाज को असम्भव बताया । इतना ही नहीँ हंसकुमार जी ने अण्णा को बम्बई के लगभग सभी दर्शनीय स्थानोँ की सैर भी कराई । हंसकुमार जी का बम्बई की अनेक फिल्मी हस्तियोँ से भी अच्छा परिचय था । सुप्रसिद्ध कलाकार और निर्माता निर्देशक सोहराब मोदी भी उनमेँ से एक थे । उस समय सोहराब मोदी का अपना थियेटर समूह था और वे देश भर मेँ थियेटर के साथ नाटकोँ का प्रदर्शन किया करते थे । हंसकुमार जी के आग्रह पर सन 1925 के आसपास सोहराब मोदी अपने थियेटर समूह के साथ टिमरनी आए थे और क़रीब एक माह तक अपने शानदार नाटकोँ का प्रदर्शन कर टिमरनी और आसपास के ग्रामीणोँ का खूब मनोरंजन किया । उस जमाने मेँ मनोरंजन के कोई अन्य साधन न होने से सोहराब मोदी के इन नाटकोँ की बड़ी चर्चा रही थी । टिमरनी मेँ प्राचीन शंकर मन्दिर के पीछे सरदार भुस्कुटे की एक पायगा थी जो चारोँ तरफ से दीवार से घिरी थी और अन्दर प्रवेश के लिए केवल एक बड़ा सा दरवाजा था । यहाँ ढोर , बैल आदि बाँधे जाते थे । सोहराब मोदी ने थियेटर के प्रदर्शन के लिए इसी स्थान को चुना था । महीने भर तक इस जगह पर मानो मेला सा लगा रहा था । सोहराब मोदी के साथ आए कलाकारोँ मेँ तत्कालीन अभिनय और संगीत जगत के बेजोड़ लोग भी थे । सोहराब मोदी स्वयं कला के बहुत बड़े पारखी थे । थियटर मेँ हारमोनियम बजाने के लिए जो कलाकार था उसकी सधी हुई उँगलियाँ हारमोनियम की रीडोँ पर मानो नृत्य करती थीँ । संयोग से एक दिन उस कलाकार को बुख़ार आ गया । सोहराब मोदी प्रदर्शन मेँ व्यवधान की आशंका से बड़े चिन्तित हो गए । उन्होँने हंसकुमार जी के पास जाकर अपनी समस्या बयान की कि अब ऐसी स्थिति मेँ क्या किया जाए ? तब हंसकुमार जी ने कहा घबराइये मत हमारी छोटी सी टिमरनी मेँ भी एक महान कलाकार रहते हैँ जो कई प्रकार के वाद्य बजाने मेँ सिद्धहस्त हैँ , आप उनसे अपना काम चला लीजिए । टिमरनी के वे कलाकार कोई और नहीँ बल्कि स्व. शिवनारायण जी बिल्लौरे ' पेटीमास्टर ' थे । अच्छी हारमोनियम बजाने के कारण ही लोग उन्हेँ पेटीमास्टर के नाम से जानते थे । हंसकुमार जी की बात सुनकर सोहराब मोदी ने कहा कि टिमरनी का कितना भी बड़ा कलाकार हमारे थियेटर मेँ चल नहीँ पाएगा । इस पर हंसकुमार जी ने कहा कि आप एक बार उनकी कला को देख तो लीजिए । हंसकुमार जी की बात मानकर सोहराब मोदी इसके लिए तैयार हो गए । दोनोँ मिलकर श्री शिवनारायण जी बिल्लौरे ' पेटीमास्टर ' के घर गए और उनका हारमोनियम वादन देखा - सुना । सोहराब मोदी उनकी कला को देखकर आश्चर्य मेँ पड़ गए और बोले कि इतना महान कलाकार यहाँ छोटी सी टिमरनी मेँ क्योँ पड़ा है ? उन्होँने पेटीमास्टर जी को उनके साथ बम्बई चलने का अनुरोध किया लेकिन न मालूम किस कारण से उन्होँने सोहराब मोदी को मना कर दिया । शायद तब बम्बई के फिल्मी वातवरण को एक परम्परावादी ब्राह्मण होने के कारण पेटीमास्टर जी ने अच्छा नहीँ समझा होगा । यूँ कहा जाए कि फिल्म जगत स्व. बिल्लौरे जी की कला से वंचित रह गया या स्वयं बिल्लौरे जी आगे बढ़ने के एक अच्छे अवसर से चूक गए । जो भी हो मोदी थियेटर का वह हारमोनियम वादक जितने दिन तक बीमार रहा उतने दिन तक बिल्लौरे जी ने उसकी जगह हारमोनियम वादन करके नाटकोँ का प्रदर्शन यथावत जारी रखा । स्व. बिल्लौरे जी का यह सहयोग सोहराब मोदी कभी नहीँ भूले ।

मंगलवार, 16 मार्च 2010

भारतीय नववर्ष

वर्ष प्रतिपदा या गुड़ी पड़वाँ का पवित्र पर्व हम सभी भारतवासियोँ के लिए गर्व और आनन्द का विषय है लेकिन खेद के साथ कहना पड़ता है कि हमारे द्वारा पश्चिम के अति अन्धानुकरण के कारण इस पर्व से जुड़े धार्मिक , सामाजिक , ऐतिहासिक और राष्ट्रीय महत्व से नई पीढ़ी अवगत नहीँ है । यदि यही हालत रही तो हमारी सांस्कृतिक और राष्ट्रीय पहचान का संकट उपस्थित होने का डर है । आईए ! आज इस पुण्य अवसर पर हम कुछ महत्वपूर्ण तथ्योँ का स्मरण कर लेँ ।
1 - इस दिन जगत्पिता ब्रह्मा जी ने ॐकार के ब्रह्मनाद के निरूपण के साथ ही सृष्टि की रचना की थी ।
2 - विश्व की प्राचीनतम एवं विज्ञान सम्मत कालगणना का आरम्भ इसी दिन से हुआ था ।
3 - शक्ति की उपासना के पर्व चैत्रीय नवरात्र का प्रथम दिन ।
4 - अयोध्या मेँ इसी दिन भगवान श्री राम के राज्याभिषेक के साथ ही भारतवर्ष मेँ रामराज्य स्थापित हुआ था ।
5 - आज ही के दिन धर्मराज युधिष्ठिर का राजतिलक हुआ था ।
6 - आज से 2066 वर्ष पूर्व सम्राट विक्रमादित्य ने आक्रमणकारी शकोँ को पराजित कर विक्रम सम्वत प्रारम्भ किया था । शत्रु शकोँ को परास्त करने के कारण ही उन्हेँ शकारि विक्रमादित्य भी कहा जाता है ।
7 - आज से 1931 वर्ष पूर्व पुन: शकोँ ने आक्रमण किया जिन्हेँ सम्राट शालिवाहन ने परास्त कर शालिवाहन सम्वत प्रारम्भ किया था ।
8 - आज ही के दिन वरुणावतार श्री झूलेलाल जी का भी इस धराधाम पर अवतरण हुआ था ।
9 - सिक्ख पंथ के द्वितीय गुरु अंगद देव जी का भी आज के दिन ही जन्म हुआ था ।
10 - उत्तर भारत के महान हिन्दू योद्धा हेमचन्द्र विक्रमादित्य ने मुग़ल बादशाह अक़बर पर आज ही के दिन ऐतिहासिक विजय प्राप्त की थी ।
11 - महर्षि दयानन्द सरस्वती ने आज ही के दिन आर्य समाज की स्थापना की थी ।
12 - राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक और जन्मजात देशभक्त आद्य सरसंघचालक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार जी का जन्म भी आज के महत्वपूर्ण दिवस को ही हुआ था। ऐसे महान पर्व पर समस्त सुधी पाठकोँ , मित्रोँ , शुभ - चिन्तकोँ , परिजन और पुरजन को अनेकानेक शुभ - कामनाएँ और बधाई ।
- रमेश दीक्षित , टिमरनी

शुक्रवार, 5 मार्च 2010

तिमिर हरणी - भाग 4

टिमरनी और टिमरनी के निवासियोँ की उन्नति मेँ यहाँ के राधास्वामी हाई स्कूल का अविस्मरणीय योगदान है । इस स्कूल की स्थापना सन 1929 मेँ हुई थी । इसके पहले यहाँ केवल एक प्राथमिक शाला ही थी जो शंकर मन्दिर के पास स्थित भवन मेँ लगती थी । आज भी यह स्कूल उसी प्राचीन भवन मेँ लगता है , यह बात अलग है कि अब इसका दर्जा मिडिल स्कूल का हो गया है और इसके परिसर मेँ कुछ नए कक्षोँ का निर्माण भी हो गया है । बाद मेँ एक कन्या प्राथमिक शाला भी खुल गई जो दत्त मन्दिर के पीछे एक पुराने भवन मेँ लगती थी । इस भवन का अब कोई अस्तित्व नहीँ बचा है । अब यहाँ केवल मैदान है जो आजकल महावीर ग्राउण्ड के नाम से जाना जाता है और अब यहाँ धार्मिक और सामाजिक आयोजन होते रहते हैँ । उस समय आगे की पढ़ाई के लिए केवल हर दृष्टि से सक्षम लोग ही अपने बच्चोँ को बाहर भेज सकते थे । इस प्रकार उच्च शासकीय शिक्षा की तत्कालीन व्यवस्था से टिमरनी के लोग लगभग वंचित ही रहते थे । ऐसे समय मेँ हंसकुमार नामक एक उच्च शिक्षित विद्वान आगरा से टिमरनी आए । वे जंगल के ठेकेदार थे , उन्होँने टिमरनी के पास के जंगलोँ का ठेका लिया हुआ था । अँग्रेज अधिकारियोँ के साथ उनके बहुत ही अच्छे सम्बंध थे । टिमरनी का वातावरण उन्हेँ कुछ ऐसा भाया कि वे यहीँ के होकर रह गए । यहाँ के प्रतिष्ठित लोगोँ के साथ उनका उठना - बैठना था । हंसकुमार दयालबाग आगरा के राधास्वामी सत्संग नामक सम्प्रदाय के अनुयायी थे । इस सम्प्रदाय के पाँचवे गुरु सर साहब जी महाराज थे जिन्हेँ आदर से सभी हुजूर साहब कहते थे । वे संभवत: हंसकुमार जी के बड़े भाई थे । हंसकुमार जी ने हुजूर साहब को टिमरनी आने का आग्रह किया । इस प्रकार हुजूर साहब का टिमरनी मेँ शुभ आगमन हुआ । टिमरनी के गण्यमान्य सज्जनोँ की एक बैठक हंसकुमार जी ने आयोजित की जिसमेँ हुजूर साहब भी उपस्थित हुए । इस बैठक मेँ टिमरनी मेँ शिक्षा की जरूरत पूरी करने के लिए हाई स्कूल खोलने की आवश्यकता पर चर्चा हुई । टिमरनी के तत्कालीन परम्परावादी लोगोँ ने यहाँ हाई स्कूल खोले जाने का पुरजोर विरोध किया । तब हुजूर साहब ने हंसकुमार जी से कहा कि जब यहाँ के लोग नहीँ चाहते तो आप क्योँ हाई स्कूल खोलने की ज़िद कर रहे हैँ । तब हंसकुमार जी ने कहा कि ये लोग शिक्षा के महत्व को समझ नहीँ पा रहे हैँ और इसीलिए यहाँ हाई स्कूल शुरु किए जाने की जरूरत है । हंसकुमार जी के अकाट्य तर्कोँ से सहमत होते हुए हुजूर साहब ने अन्त मेँ हाई स्कूल प्रारंभ करने की अनुमति दे दी । इस प्रकार 1929 मेँ टिमरनी मेँ राधास्वामी हाई स्कूल की स्थापना हुई । समय गवाह है कि हंसकुमार जी की सोच कितनी दूरगामी थी । आज इस स्कूल से पढ़कर निकले विद्यार्थियोँ ने देश के विभिन्न क्षेत्रोँ मेँ प्रतिष्ठित पदोँ पर कार्य करते हुए राष्ट्र और समाज की अभूतपूर्व सेवा की है । प्रारंभ मेँ इस स्कूल की कक्षाएँ रेल्वे फाटक के पास स्थित राजा बरारी एस्टेट के तत्कालीन टीन शेडोँ मेँ लगा करती थीँ । अब इस स्कूल को एक विशाल परिसर और भवन की दरकार थी । हंसकुमार जी ने अपनी ऊँची पहुँच और वाकपटुता से स्कूल के लिए रेल्वे स्टेशन और बस्ती के बीच स्थित एक खेत हासिल किया जहाँ 1932 मेँ राधास्वामी हाई स्कूल की बहुत ही ख़ूबसूरत और बेजोड़ इमारत तामीर हुई । ऐसा कहते हैँ कि इस नायाब भवन का मानचित्र स्वयं हंसकुमार जी ने तैयार किया था । इस इमारत का निर्माण हंसकुमार जी ने स्वयं अपनी देखरेख मेँ करवाया था । इसकी एक - एक ईँट पर हंसकुमार जी का संक्षिप्त नाम H K अंकित है । यूँ तो हंसकुमार जी ने समाज की भलाई के अनेक कार्य टिमरनी मेँ किए हैँ लेकिन राधास्वामी हाई स्कूल की स्थापना करके उन्होँने जो महान कार्य किया है उसके लिए उन्हेँ हमेशा याद रखा जायेगा । टिमरनी के लोग उनके इस उपकार के लिए सदैव ऋणी रहेँगे । टिमरनी के पुराने लोग आज भी हंसकुमार जी को भावुक होकर याद करते हैँ । कहते हैँ कि तब टिमरनी मेँ अँग्रेजी बोलने और समझने वाले केवल दो ही लोग थे एक हंसकुमार जी और दूसरे श्री जगन्नाथराव जी मुजुमदार । तब यदि किसी के यहाँ तार ( टेलीग्राम ) आता था तो इसका यही अर्थ होता था कि किसी की मौत हो गई है । तार मिलते ही घर मेँ कोहराम मच जाता था । तब अँग्रेजी मेँ लिखे हुए उस तार को पढ़वाने के लिए इन्हीँ दो सज्जनोँ के पास जाना पड़ता था । कई बार तार मेँ किसी खुशी की ख़बर भी होती थी लेकिन जब तक उसे इनसे पढ़वाया जाता था तब तक घर मेँ मातम का ही माहौल रहता था । एक समय था जबकि टिमरनी मेँ किसी के पास सायकल भी नहीँ थी ऐसे समय मेँ हंसकुमार जी के पास मोटरकार हुआ करती थी । चूँकि हंसकुमार जी का जंगलोँ के ठेके का काम था और इस कारण उन्हेँ राजा बरारी के जंगलोँ मेँ बार - बार जाना - आना पड़ता था इस कारण वे मोटरकार रखते थे । बच्चे उनकी मोटरकार को देखने के लिए दौड़ा करते थे । उस जमाने मेँ हंसकुमार जी ने टिमरनी से राजाबरारी के जंगल तक टेलीफोन की लाइन अपने स्वयं के खर्चे से डलवाई थी जिसके तारोँ के लिए लकड़ी की बल्लियाँ खड़ी की गई थीँ । आज कम्प्यूटर और मोबाइल फोन के युग मेँ ये बातेँ अविश्वसनीय भले ही लगेँ मगर हक़ीकत तो यही है । कहते हैँ कि उस जमाने मेँ टिमरनी के हर छोटे - बड़े काम मेँ केन्द्रीय भूमिका हंसकुमार जी की ही होती थी । टिमरनी की नदी के पुल का निर्माण भी हंसकुमार जी की ही देन है जिसे राधाबाई का पुल कहते हैँ । इस पुल के निर्माण से नदी की बाढ़ का पानी गाँव मेँ घुसना बन्द हो गया वरना पहले सारा गाँव जलमग्न हो जाया करता था और हर साल लोगोँ को बड़ी परेशानी और नुकसान उठाना पड़ता था ।