बुधवार, 27 अक्तूबर 2010

अरुन्धति रॉय को फाँसी दो

यह केवल और केवल भारत जैसे उदात्त चरित्र वाले देश मेँ ही संभव है कि अरुन्धति रॉय जैसी कमीनी औरत एक के बाद एक राष्ट्र द्रोही बयान देती हुई सरेआम घूम रही है और फिर भी हम उसका कुछ नहीँ बिगाड़ पा रहे हैँ । अब सुना है कि वह देश छोड़कर फरार हो गई है । ' गॉड ऑफ स्माल थिँग्स ' नामक एक बेहद घटिया , सड़कछाप और अश्लील किताब लिखने पर उसे विदेश का बुकर पुरुस्कार क्या मिल गया वह अपने आप को सबसे ऊपर और सबसे महान समझने लगी यहाँ तक कि देश से भी ऊपर । बिना कुछ जाने समझे भारत के निठल्ले मीडिया ने भी इस बौराई हुई औरत को महान लेखिका के रूप मेँ महिमामण्डित करने मेँ कोई कसर नहीँ छोड़ी । मुझे याद नहीँ पड़ता कि ' गॉड ऑफ स्माल थिँग्स ' के बाद उसने कोई और किताब भी लिखी है । हाँ देश विरोधी तत्वोँ के हाथोँ का खिलौना बनकर अपने देश विरोधी लेखोँ और वक्तव्योँ से वह अक्सर मीडिया की सुर्खियोँ मेँ जरूर बनी रही । साहित्यिक समझ रखने वाले लोगोँ ने ' गॉड ऑफ स्माल थिँग्स ' को बुकर पुरुस्कार मिलने पर आश्चर्य व्यक्त करते हुए पुरुस्कार के निर्णायकोँ की समझ पर प्रश्नचिन्ह लगाया था । समय से पहले और जरूरत से ज्यादा सम्मान मिलने से अरुन्धति रॉय को इस कदर गुरूर छा गया कि उसने भारत सरकार द्वारा उसे दिये गये साहित्य अकादमी पुरुस्कार को भी लात मारकर ठुकरा दिया । इतना सब होते हुए भी काँग्रेस के एक अल्पज्ञ प्रवक्ता ने उसे देश की सर्वश्रेष्ठ लेखिका का तमगा दे दिया । काँग्रेस प्रवक्ता की यह टिप्पणी इस देश के महान लेखकोँ का घोर अपमान है और इसलिए सर्वथा त्याज्य और धिक्कारणीय है । जिस औरत को नारकीय जीवन जीने और अपने ही देश मेँ शरणार्थी होने का दंश झेलने को मजबूर कश्मीर के विस्थापित पण्डितोँ की बजाय गिलानी जैसे गद्दारोँ और मासूम , निरपराध ग्रामीणोँ की हत्या करने वाले नक्सलियोँ की ज्यादा फिक्र हो वह औरत खुद भी आम देशभक्तोँ की नजर मेँ एक गद्दार है और ऐसी औरत को सिर्फ और सिर्फ फाँसी की सजा ही मिलनी चाहिए । मगर अफसोस कि वह भारत सरकार को मुँह चिढ़ाते हुए देश छोड़कर भाग निकली यह सरकार का भी अक्षम्य अपराध है और उसे भाग निकलने का मौका देने के लिए जिम्मेदार लोगोँ को भी सजा मिलनी चाहिए । पर मुझे इस सरकार से इसकी कोई उम्मीद नहीँ है ।
- रमेश दीक्षित , टिमरनी

शनिवार, 16 अक्तूबर 2010

विजयादशमी

भ्रष्ट व्यवस्था पर हो जन - मानस का पहरा ।
तभी मिटेगा राष्ट्र - भाल का दाग ये गहरा ।
चुन - चुन कर मारे जायेँगे अब के रावण ,
सही अर्थ मेँ तभी मनेगा पर्व दशहरा ।
असत्य पर सत्य की , अन्याय पर न्याय की और बुराई पर अच्छाई की विजय का पर्व विजयादशमी आपको जीवन के प्रत्येक क्षेत्र मेँ विजय प्रदान करे , यही मंगल - कामना हम करते हैँ ।
- रमेश दीक्षित , टिमरनी

गुरुवार, 7 अक्तूबर 2010

शक्ति की भक्ति का पर्व

शक्ति की भक्ति के महान भारतीय पर्व शारदीय नवरात्रि पर समस्त पाठकोँ , मित्रोँ , शुभ - चिन्तकोँ और देशवासियोँ को हार्दिक शुभ - कामनाएँ एवं ढेरोँ बधाइयाँ ।
- रमेश दीक्षित , टिमरनी

शुक्रवार, 1 अक्तूबर 2010

फ़ैसला नहीँ तुष्टिकरण

अपने हृदय मेँ माननीय प्रयाग उच्च न्यायालय की लखनऊ खण्डपीठ के प्रति सम्पूर्ण आस्था और श्रद्धा का अटूट भाव रखते हुए मैँ यह निवेदन करना चाहता हूँ कि कल 30 सितम्बर को उन्होँने जो फ़ैसला सुनाया है वह दो समुदायोँ के बीच सदियोँ से चले आ रहे विवाद का कोई स्थायी समाधान नहीँ है । इसमेँ सभी सम्बधित पक्षोँ के लिए तात्कालिक तुष्टिकरण से अधिक और कुछ भी नहीँ है । इस फ़ैसले को यदि इसी रूप मेँ अमल मेँ लाया गया तो दो समुदायोँ के बीच यह एक स्थायी विवाद का कारण बनेगा और आम लोग हमेशा ही झगड़े की आशंका से ग्रसित रहेँगे । माननीय उच्च न्यायालय को भविष्य की इसी सम्भावना को ध्यान मेँ रखकर अपने निर्णय मेँ विवाद का स्थायी समाधान प्रस्तुत करना था लेकिन दुर्भाग्य से ऐसा दूरगामी परिणामोँ वाला निर्णय नहीँ आ सका । यही वह मुख्य कारण है कि फ़ैसले का स्वागत करने के बावज़ूद भी दोनोँ पक्षोँ ने इस निर्णय के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय मेँ अपील करने की घोषणा की है । राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत ने इस फ़ैसले पर एकदम सटीक प्रतिक्रिया व्यक्त की है कि इस फ़ैसले को हार या जीत के रूप मेँ नहीँ देखा जाना चाहिए अर्थात इसमेँ किसी भी पक्ष की हार या जीत नहीँ हुई है । एक बात जो अच्छी हुई वो यह है कि इस फ़ैसले के बाद कहीँ से भी उन्माद भड़कने की कोई ख़बर नहीँ है और इसके लिए प्रशासन की चाक चौबन्द व्यवस्था की प्रशंसा की जाना चाहिए हालाकि मीडिया की शरारतपूर्ण कोशिशोँ के कारण आम जनता मेँ किसी अनहोनी को लेकर तमाम तरस की आशंकाएँ जन्म ले चुकी थीँ । अब इस फ़ैसले के एक सुखद पक्ष की चर्चा करना भी समीचीन होगा । तीनोँ ही माननीय न्यायाधीशोँ ने एकमत से इस तथ्य को स्थापित किया है कि विवादित स्थल ही हिन्दुओँ के आराध्य श्री राम की जन्मभूमि है । और निश्चित ही इसके लिए उन्होँने जिस बात को आधार माना है वह कोटि - कोटि हिन्दुओँ की अटूट आस्था और श्रद्धा ही है । अब इसी आस्था और श्रद्धा के आधार को मथुरा की कृष्ण जन्मभूमि और काशी के विश्वनाथ मन्दिर के मामले मेँ एक उदाहरण और नज़ीर के रूप मेँ प्रस्तुत करके इनके भी स्थायी समाधान का रास्ता खोजा जाना चाहिए । भारतमाता की जय ।
- रमेश दीक्षित , टिमरनी