सोमवार, 30 नवंबर 2009

चीन को सबक सिखाओ

हम यह किस तरह यकीन करेँ कि भारत एक सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न राष्ट्र है ? आए दिन चीन हमारे आन्तरिक मामलोँ मेँ हस्तक्षेप करता रहता है और हम शुतुरमुर्ग की तरह रेत मेँ अपनी गर्दन गड़ाकर चुपचाप मामले के ठण्डा होने की राह देखते रहते हैँ । आज तो चीन के सैनिकोँ ने उस समय हद कर दी जब लद्दाख मेँ नरेगा के तहत चल रहे कार्य को उन्होँने बलात रुकवा दिया । और आश्चर्य है कि हमने भी चुपचाप काम को रुक जाने दिया । कोई विरोध नहीँ । इसके पहले भी लद्दाख की सीमा का हवाई और जमीनी अतिक्रमण हम चुपचाप सह गए । अरुणाचल प्रदेश पर उसके बेजा दावे को हम बातचीत के जरिए सुलझाने की बात करते हैँ । यह तो प्रकारान्तर से चीन के दावे को स्वीकार करने जैसा है । प्रधान मंत्री मनमोहनसिँह और दलाई लामा की अरुणाचल प्रदेश यात्रा पर चीन की आपत्ति का लिजलिजी भाषा मेँ विरोध करके हमारी सरकार ने अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ ली । लातोँ के भूत बातोँ से मानने वाले नहीँ हैँ । पर हमेँ लात मारना आता कहाँ है ? अन्तर्राष्ट्रीय और विवादित मामलोँ पर हमारे नेताओँ की भाषा से कभी भी यह आभास नहीँ होता कि हम एक परमाणु शक्ति सम्पन्न राष्ट्र हैँ । जवाहरलाल नेहरु ने अपनी अन्तर्राष्ट्रीय छवि बनाने के लिए चीन की समूहवादी सरकार को सबसे पहले मान्यता देकर पहली और बहुत बड़ी भूल की थी । पञ्चशील समझौता दूसरी बड़ी भूल थी । हिन्दी चीनी , भाई - भाई का थोथा नारा लगाकर हमारी पीठ मेँ छुरा भोँकने वाले चीन की नीयत को यदि हम अब भी नहीँ समझ पाए तो यह खतरा आगे और भी खतरनाक सूरत अख्तियार करने वाला है । हमने तिब्बत को चीन का हिस्सा स्वीकार करके तीसरी बड़ी भूल की । कैलाश मानसरोवर पर उसके जबरन कब्जे पर भी हम खामोश हैँ । हमारे स्वाभिमानशून्य नेतृत्व के चलते हमने केवल खोया ही है , पाया कुछ भी नहीँ । अटलबिहारी वाजपेयी की सरकार मेँ रक्षा मंत्री रहे जार्ज फर्नाण्डीस ने एक बार बहुत जिम्मेदारी भरा बयान लोकसभा मेँ देते हुए कहा था कि हमारा सबसे बड़ा शत्रु चीन है । तब निर्लज्ज वामपंथियोँ ने बड़ी हाय तौबा मचाई थी लेकिन जार्ज की सोच कितनी सही थी यह आज सिद्ध हो रहा है । हमारी क्लैव सरकार से भला हम क्या उम्मीद रखेँ जिसमेँ न तो इच्छाशक्ति दिखाई देती है और न ही क्षमता ।
- रमेश दीक्षित , टिमरनी

1 टिप्पणी:

बेनामी ने कहा…

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बधाई।

बी एस पाबला