शुक्रवार, 1 अक्तूबर 2010

फ़ैसला नहीँ तुष्टिकरण

अपने हृदय मेँ माननीय प्रयाग उच्च न्यायालय की लखनऊ खण्डपीठ के प्रति सम्पूर्ण आस्था और श्रद्धा का अटूट भाव रखते हुए मैँ यह निवेदन करना चाहता हूँ कि कल 30 सितम्बर को उन्होँने जो फ़ैसला सुनाया है वह दो समुदायोँ के बीच सदियोँ से चले आ रहे विवाद का कोई स्थायी समाधान नहीँ है । इसमेँ सभी सम्बधित पक्षोँ के लिए तात्कालिक तुष्टिकरण से अधिक और कुछ भी नहीँ है । इस फ़ैसले को यदि इसी रूप मेँ अमल मेँ लाया गया तो दो समुदायोँ के बीच यह एक स्थायी विवाद का कारण बनेगा और आम लोग हमेशा ही झगड़े की आशंका से ग्रसित रहेँगे । माननीय उच्च न्यायालय को भविष्य की इसी सम्भावना को ध्यान मेँ रखकर अपने निर्णय मेँ विवाद का स्थायी समाधान प्रस्तुत करना था लेकिन दुर्भाग्य से ऐसा दूरगामी परिणामोँ वाला निर्णय नहीँ आ सका । यही वह मुख्य कारण है कि फ़ैसले का स्वागत करने के बावज़ूद भी दोनोँ पक्षोँ ने इस निर्णय के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय मेँ अपील करने की घोषणा की है । राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत ने इस फ़ैसले पर एकदम सटीक प्रतिक्रिया व्यक्त की है कि इस फ़ैसले को हार या जीत के रूप मेँ नहीँ देखा जाना चाहिए अर्थात इसमेँ किसी भी पक्ष की हार या जीत नहीँ हुई है । एक बात जो अच्छी हुई वो यह है कि इस फ़ैसले के बाद कहीँ से भी उन्माद भड़कने की कोई ख़बर नहीँ है और इसके लिए प्रशासन की चाक चौबन्द व्यवस्था की प्रशंसा की जाना चाहिए हालाकि मीडिया की शरारतपूर्ण कोशिशोँ के कारण आम जनता मेँ किसी अनहोनी को लेकर तमाम तरस की आशंकाएँ जन्म ले चुकी थीँ । अब इस फ़ैसले के एक सुखद पक्ष की चर्चा करना भी समीचीन होगा । तीनोँ ही माननीय न्यायाधीशोँ ने एकमत से इस तथ्य को स्थापित किया है कि विवादित स्थल ही हिन्दुओँ के आराध्य श्री राम की जन्मभूमि है । और निश्चित ही इसके लिए उन्होँने जिस बात को आधार माना है वह कोटि - कोटि हिन्दुओँ की अटूट आस्था और श्रद्धा ही है । अब इसी आस्था और श्रद्धा के आधार को मथुरा की कृष्ण जन्मभूमि और काशी के विश्वनाथ मन्दिर के मामले मेँ एक उदाहरण और नज़ीर के रूप मेँ प्रस्तुत करके इनके भी स्थायी समाधान का रास्ता खोजा जाना चाहिए । भारतमाता की जय ।
- रमेश दीक्षित , टिमरनी