बुधवार, 1 सितंबर 2010

सलाह नहीँ आदेश

आदेश को सलाह कहने पर दो टूक शब्दोँ मेँ फटकार लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने बेशर्म कृषि मंत्री शरद पवार के गाल पर जो करारा तमाचा मारा है उससे उन्हेँ अपनी औकात पता चल गई होगी । आजकल के नेताओँ मेँ अपने आप को सबसे ऊपर मानने की जो प्रवृत्ति विकसित हो गई है उस पर अब केवल सर्वोच्च न्यायलय ही अंकुश लगा सकता है । मेहनतकश किसानोँ ने अपना खून पसीना बहाकर देश के अन्न भण्डारोँ को भर दिया लेकिन सरकारी भ्रष्टाचार और अव्यवस्था के कारण उसी अनाज को सड़ते हुए देखकर किसानोँ की आत्मा किलप उठी है । अन्न को ब्रह्म मानने वाले किसानोँ की आत्मा ने अवश्य ही शरद पवार को बद्दुआएँ दी होँगी । निर्लज्ज शरद पवार ने लाखोँ टन अनाज के सड़ने की घटना को मामूली करार देते हुए इसे मीडिया द्वारा बढ़ाचढ़ा कर पेश करने की बात कह दी । आश्चर्य है कि लाखोँ टन अनाज का सड़ना सारी जनता को तो दिखाई देता है पर शरद पवार को नहीँ । इसी तरह बेतहाशा बढ़ती कमरतोड़ महँगाई से जनता पिस रही है पर सरकार को महँगाई की दर मेँ कमी दिखाई दे रही है । यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि जो जनता को दिखाई देता है वह सरकार को नहीँ दिखता और जो सरकार को दिखता है वह आम लोगोँ को दूर - दूर तक नज़र नहीँ आता । हे ईश्वर ! इस सरकार को जनता की दृष्टि प्रदान कर ताकि इसे भी वही दिखाई दे जो हम सबको दिखाई देता है ।
- रमेश दीक्षित , टिमरनी

1 टिप्पणी:

honesty project democracy ने कहा…

जनता इंसान है और सरकार में शरद पवार जैसे हैवान बैठें हैं तो उनमे जनता जैसी दृष्टि तब आएगी जब जनता इनको इनके कुकर्मों के लिए बीच चौराहे पे इनको फांसी देगी ...इनका गुनाह इतना गंभीर है की इनको बीच चौराहे पे धूप में जंजीरों में जकर कर भूखे मरने के लिए छोड़ देना चाहिए जिससे मरने से पहले ये अपने गुनाहों के बारे में कम से कम सोच जरूर सके ...