मंगलवार, 27 सितंबर 2011

चीन के साम्राज्यवादी मंसूबोँ के बारे मेँ देश का बच्चा - बच्चा अच्छी तरह से वाकिफ़ है परन्तु यह आश्चर्य की बात है कि भारत सरकार कुंभकर्णी निद्रा मेँ सोई हुई है । उसे देश की सीमाओँ की हिफ़ाजत की रत्ती भर भी चिन्ता नहीँ है । उसे तो येन केन प्रकारेण अपनी सत्ता को बचाए रखने की ही फ़िक्र है । चीन पिछले कुछ वर्षोँ मेँ न केवल कई बार हमारी सीमाओँ का बेजा उल्लंघन कर चुका है अपितु उल्टा चोर कोतवाल को डाँटे वाली कहावत को चरितार्थ करते हुए अरुणाचल प्रदेश तथा लद्दाख क्षेत्र पर अपने अधिकार का दावा भी करता है । सीमाओँ पर उसकी सैन्य गतिविधियाँ उसके कुटिल इरादोँ को ज़ाहिर कर रही हैँ । हमारी सीमाओँ की सुरक्षा का आलम ये है कि वहाँ होने वाली हरकतोँ की जानकारी हमारी सरकार को या तो विदेशी एजेंसियोँ के माध्यम से मिलती है या फिर महीनोँ बाद पता चलती है । हर बार हमारी सरकार का वही घिसा पिटा बयान सामने आ जाता है कि चीन की गतिविधियोँ पर हमारी नज़र है । ज्यादा से ज्यादा मिमियाती हुई भाषा मेँ एक तथाकथित विरोध पत्र भेजकर यह मान लिया जाता है कि इससे चीन का हृदय परिवर्तन हो जाएगा और वह अब कोई भी ग़लत हरक़त नहीँ करेगा । दर असल हमारी ये लुंजपुंज केन्द्र सरकार न तो चीन के कुत्सित इरादोँ को समझ पाई है और न ही इतिहास से वह कुछ सबक लेना चाहती है । स्मरण रहे कि अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार मेँ रक्षा मंत्री रहे देश भक्त जार्ज फर्नाण्डीज़ ने तब संसद मेँ यह कहा था कि हमारा सबसे बड़ा दुश्मन चीन है । वास्तव मेँ कितने दूरदर्शी हैँ जार्ज और कितनी मूर्ख है हमारी ये सरकार । इसे देश हितोँ की बलि चढ़ाने मेँ कोई लज्जा नहीँ आती । इतने बड़े और सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न देश की सरकार आखिर चीन से इतनी भयभीत क्योँ रहती है ? क्योँ नहीँ वह अन्तर्राष्ट्रीय मंचोँ से यह सिँह गर्जना करती कि चीन हमारी हजारोँ वर्ग मील भूमि हमेँ लौटाए जो उसने 1962 मेँ भारत पर हमला करके हड़प ली थी ? क्योँ नहीँ यह सरकार तिब्बत की आजादी का समर्थन करती जिस पर चीन ने जबरन कब्जा कर तिब्बतियोँ को गुलाम बनाकर रखा है ? क्योँ नहीँ चीन से अपना कैलाश मान सरोवर छीना जाता ? इस रीढ़विहीन , सज़दे मेँ झुकी हुई और डरपोँक सरकार से ये उम्मीद बेमानी ही है । अरे ! जिस सरकार आज़ादी के बाद न केवल अपनी जमीन खोई हो बल्कि तश्तरी मेँ रखकर भेँट कर दी हो वह सरकार देश के स्वाभिमान की भला क्या परवाह करेगी ? चीन ने हमारी धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर कैलाश मानसरोवर सहित हजारोँ वर्ग मील भूमि पर कब्जा कर लिया और हम आज तक हाथ पर हाथ धरे लाचार बैठे हैँ । उसने तिब्बत हथिया लिया फिर भी हम खामोश रहे । पाकिस्तान ने तीन चौथाई कश्मीर हमसे छीन लिया , हम कुछ नहीँ कर सके । 1965 के युद्ध मेँ जीती हुई जमीन हम टिफिन टेबल पर हार गए और शहीदोँ का बलिदान व्यर्थ चला गया । काँग्रेस सरकार ने कच्छ का रन पाकिस्तान को , कच्चातिवु द्वीप श्रीलंका को और तीन बीघा गलियारा बंगला देश को तश्तरी मेँ रखकर भेँट कर दिया । हाल ही मेँ बंगला देश को देश का एक और हिस्सा दान कर दिया गया । ये भ्रष्ट और देशद्रोही सरकार आखिर किस सीमा तक घुटने टेकेगी और कब तक देश हितोँ का बलिदान करेगी ? भगवान्‌ इनको सद्बुद्धि दे ।
- रमेश दीक्षित , टिमरनी ।

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