शनिवार, 9 जनवरी 2010

तिमिर हरणी

गत 1 जनवरी को मैँने तिमिर हरणी अर्थात टिमरनी नामक यह लेख श्रृंखला प्रारंभ की थी । उसमेँ मैँने ' टिमरनी ' के नाम के बारे मेँ प्रचलित प्राचीन मान्यताओँ की चर्चा की थी । आज के लेख मेँ ' टिमरनी ' नगर की प्राचीनता की पड़ताल करने का प्रयास करूँगा । कई वर्ष पहले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की एक महत्वपूर्ण बैठक टिमरनी मेँ सम्पन्न हुई थी जिसमेँ भाग लेने हेतु विश्वविख्यात पुरातत्ववेत्ता डॉ. हरिभाऊ वाकणकर यहाँ पधारे थे । बैठक के विभिन्न सत्रोँ के बीच समय निकालकर वे अपनी रुचि के अनुसार टिमरनी की प्राचीन धरोहरोँ और आसपास बिखरी दुर्लभ पुरा सम्पदा का अन्वेषण करते थे । अपने इसी अन्वेषण के आधार पर उन्होँने टिमरनी के अस्तित्व को छ: सौ वर्षोँ से भी अधिक पुराना प्रतिपादित किया था और इस बारे मेँ एक विस्तृत आलेख लिखकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक और टिमरनी निवासी मूर्धन्य विद्वान स्वर्गीय भाऊ साहब भुस्कुटे के पास भेजा था । इस आलेख की चर्चा स्व. भाऊ साहब जी ने स्वाभाविक ही कुछ लोगोँ से की थी । इन्हीँ मेँ से किसी सज्जन ने वह आलेख पढ़ने के लिए भाऊ साहब जी से माँग लिया और फिर कभी नहीँ लौटाया । इस प्रकार एक दुर्लभ दस्तावेज किसी लापरवाह व्यक्ति की ग़ैरजिम्मेदाराना हरक़त की भेँट चढ़ गया । स्व. भाऊ साहब भुस्कुटे को अपने देशव्यापी प्रवासोँ की व्यस्तता के चलते यह विस्मृति हो गई कि उन्होँने उक्त आलेख किसे दिया था ? स्वयं भाऊ साहब जी ने इस बारे मेँ एकाधिक बार मुझसे इस बात का उल्लेख किया था ।
टिमरनी का प्राचीन किला , जिसे यहाँ ' गढ़ी ' के नाम से जाना जाता है , भी पुरातात्विक काल गणना के अनुसार छ: सौ वर्षोँ से अधिक पुराना है । इसी गढ़ी के आग्नेय बुर्ज़ के नीचे बाहर की ओर एक छोटा परन्तु अति प्राचीन मन्दिर है जिसे पुराणिक बुआ के मन्दिर के नाम से जाना जाता है । कुछ लोग इसे मुलिया बाई के मन्दिर के नाम से भी जानते हैँ ।इस मन्दिर मेँ स्थित हनुमान जी की मूर्ति के नीचे एक इबारत खुदी हुई है जिससे भी इसके छ: सौ वर्षोँ से अधिक प्राचीन होने का पता चलता है । यहाँ पर यत्र - तत्र पड़ी प्राचीन मूर्तियाँ कुछ वर्ष पूर्व होशंगाबाद के जिला पुरातत्व संग्रहालय मेँ ले जाकर रख दी गई हैँ । होशंगाबाद के इसी संग्रहालय मेँ टिमरनी की दो नर्तकियोँ की प्राचीन प्रतिमाओँ के छायाचित्र लगे हुए हैँ जो बारहवीँ शताब्दी की हैँ । ये प्रस्तर प्रतिमाएँ आज भी टिमरनी की गढ़ी की दीवार के अन्दरूनी भाग मेँ लगी हुई हैँ । इसके अतिरिक्त इस गढ़ी की चहारदीवारी और बुर्ज़ोँ मेँ भी अनेक दुर्लभ मूर्तियाँ और पुरा सामग्री विद्यमान है । कुछ वर्षोँ पूर्व गढ़ी के बाहर पूर्वी भाग मेँ स्थित बस्ती मेँ दो मकानोँ के जीर्णोद्धार के समय की गई खुदाई मेँ दो नर कंकाल निकले थे लेकिन जागरुकता के अभाव और किसी लफड़े मेँ पड़ने के डर के चलते चुपचाप उन नरकंकालोँ को नर्मदा जी मेँ विसर्जित कर दिया गया अन्यथा उन प्राचीन नरकंकालोँ के अध्ययन से टिमरनी के प्राचीन इतिहास पर कुछ और प्रकाश पड़ सकता था । ऐसी भी किँवदन्तियाँ यहाँ सुनने को मिलती हैँ कि पुराने समय मेँ टिमरनी बस्ती वर्तमान रेल्वे लाइन के उत्तर मेँ तिड़क्यान बाबा के मन्दिर के आसपास बसी हुई थी । पिण्डारियोँ की लूटपाट के समय बस्ती के लोग भागकर गढ़ी के अन्दर शरण लिया करते थे । जब इस प्रकार की वारदातेँ बढ़ने लगीँ तो बस्ती के लोगोँ ने गढ़ी के आसपास बसना शुरू कर दिया । और धीरे - धीरे सभी लोग सुरक्षा की दृष्टि से गढ़ी के आसपास आकर बस गए । इस दृष्टि से टिमरनी बस्ती हरदा से भी प्राचीन सिद्ध होती है ।
....क्रमश:

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