रविवार, 8 अगस्त 2010

पिछली पोस्ट का शेष भाग

इस बारे मेँ मनुष्य की चालाक वृत्ति का एक रोचक उदाहरण देते हुए श्री होसबले ने बताया कि एक आदमी के पास एक घोड़ा था जिसे वह बहुत चाहता था । एक दिन वह घोड़ा बीमार पड़ गया । बहुत उपाय किए पर घोड़ा अच्छा नहीँ हुआ । अन्ततोगत्वा वह भगवान के मन्दिर मेँ गया और मन्नत माँगी कि यदि घोड़ा ठीक हो गया तो मैँ इसे बेच दूँगा और जो भी रकम मिलेगी उसे मन्दिर मेँ दान कर दूँगा । भगवान की कृपा से कुछ दिनोँ मेँ घोड़ा ठीक हो गया । अब उसे भगवान के सामने की हुई अपनी मन्नत याद आई । तब उसने कुछ सोचकर घोड़े को बेचने की घोषणा कर दी और उसकी कीमत रखी पाँच रुपये । यह सुनकर कई ग्राहक आ गए । उसने कहा कि घोड़ा तो पाँच रुपये का है पर एक शर्त है कि घोड़ा खरीदने वाले को घोड़े के साथ एक बिल्ली भी खरीदनी पड़ेगी जिसकी कीमत है दस हजार रुपये । इस प्रकार घोड़े को बेचने से मिले पाँच रुपये तो उसने मन्दिर मेँ चढ़ा दिए और दस हजार रुपये अपनी जेब मेँ रख लिए ।
उन्होँने कहा कि लोगोँ को संस्कार , सेवा , त्याग , समर्पण और देशभक्ति जैसे सनातन जीवन मूल्योँ को बढ़ावा देना चाहिए जो कि आज के समय मेँ कुछ कम हो गए हैँ अथवा बदल गए हैँ । आज देश विरोधी ताकतेँ सक्रिय हैँ , समाज मेँ भ्रष्टाचार व्याप्त है और छुआछूत की समस्या है । इन सब का कारण है ईमानदार नेतृत्व का अभाव । आज मनुष्य को ठीक करने की समस्या है । मनुष्य ठीक होगा तो देश भी अपने आप ठीक हो जाएगा । इसलिए आज संघ कार्य के प्रकाश को सब दूर तेज गति से फैलाने की आवश्यकता है । यह न केवल राष्ट्र को आगे बढ़ाने के लिए आवश्यक है अपितु मानवता की भलाई के लिए भी जरूरी है ।
- रमेश दीक्षित , टिमरनी

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