शुक्रवार, 6 अगस्त 2010

सुभाषित परिमलः

दिनांक 4 अगस्त 2010 बुधवार को टिमरनी के सरस्वती शिशु मन्दिर के श्रद्धेय भाऊ साहब भुस्कुटे सभागृह मेँ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह श्री दत्तात्रेय होसबले ने संस्कृत सुभाषितोँ के एक वृहद संकलन ' सुभाषित परिमलः ' का समारोहपूर्वक विमोचन किया । इस अवसर पर उन्होँने इस पुस्तक के लिए संघ के पूज्य सरसंघचालक माननीय मोहनराव जी भागवत द्वारा संस्कृत मेँ प्रेषित शुभ - कामना सन्देश का वाचन भी किया । श्री होसबले ने ' सुभाषित परिमल: ' के संकलनकर्ता और अनुवादक तथा संस्कृत के विद्वान श्री रामचन्द्र विष्णुपंत पातोण्डीकर उपाख्य रामभाऊ पातोण्डीकर को शाल और श्रीफल भेँटकर सम्मानित किया । 15 मार्च 1931 को जन्मे श्री रामभाऊ पातोण्डीकर संस्कृत विषय से एम.ए. , बी.टी. और हिन्दी साहित्य विशारद हैँ । वे बाल्यकाल से ही संघ के स्वयंसेवक हैँ । 1949 से 1955 तक प्रतिकूलता के समय मेँ वे संघ के प्रचारक रहे । एक योग्य शिक्षक के रूप मेँ आपने छात्रोँ की अनेक पीढ़ियोँ को सुसंस्कृत बनाने का स्तुत्य कार्य किया । 1991 मेँ शासकीय सेवा से निवृत्त होने के बाद उन्होँने भोपाल मेँ विद्या भारती के आवासीय विद्यालय शारदा विहार मेँ मार्गदर्शक के रूप मेँ अपनी सेवाएँ दीँ । सन् 1991 से 2003 तक वे विद्या भारती और संस्कृत भारती , धुले ( महाराष्ट्र ) के कार्य मेँ सहयोगी रहे । इस विमोचन कार्यक्रम मेँ अपने संक्षिप्त उद्‌बोधन मेँ श्री रामभाऊ पातोण्डीकर ने ' सुभाषित परिमलः ' की पृष्ठभूमि की चर्चा करते हुए अपने संस्कृत अनुराग के लिए श्रद्धेय भाऊ साहब भुस्कुटे को अपना प्रेरणास्रोत और गुरू बताया । उन्होँने कहा कि मुझ पर भाऊ साहब जी के अनन्त उपकार हैँ और यह पुस्तक उन्हीँ की कृपा का परिणाम है । संस्कृत के सुभाषितोँ की चर्चा करते हुए उन्होँने कहा कि सुभाषित कठिनाईयोँ के समय हमारा उचित मार्गदर्शन करते हैँ । इस बारे मेँ उन्होँने स्वयं का एक अनुभव भी सुनाया । उन्होँने कहा कि 1980 मेँ उनका स्थानान्तरण बुरहानपुर से कोई हजार मील सुदूर छत्तीसगढ़ के एक छोटे से गाँव मेँ कर दिया गया । तब कुछ मित्रोँ ने कहा कि फलाँ मंत्री या फलाँ नेता के पास जाकर तबादला रद्द कराने के लिए प्रार्थना करना चाहिए । ऐसे कठिन समय मेँ निम्नलिखित सुभाषित ने मेरा मार्गदर्शन किया ।
'' रे रे चातक सावधानमनसा मित्र क्षणं श्रूयतताम । अम्बोधाः बहवोऽपि सन्ति गगने सर्वेऽपि नैतादृशाः ॥ केचिद्‌ वृष्टिभिरार्द्रयन्ति धरणीँ गर्जन्ति केचिदवृथा । यं यं पश्यसि तस्य तस्य पुरतो मा ब्रूहि दीनं वचः ॥
अर्थात - रे मित्र चातक ! सावधान चित्त से जरा एक क्षण मेरी बात सुनो । आकाश मेँ बादल तो बहुत इकट्ठा हो गए हैँ पर वे सब एक जैसे नहीँ । उनमेँ से कुछ अपनी जलवृष्टि से धरती को सराबोर कर देते हैँ तो कुछ व्यर्थ ही गर्जना करते रहते हैँ । तब जिस किसी को तुम देखो उसी के सामने गिड़गिड़ाना बंद करो , सभी से याचना मत करो ।
इस अवसर पर श्री होसबले जी ने ' सुभाषित परिमलः ' के सम्पादक और शासकीय राज्य स्तरीय विधि महाविद्यालय भोपाल के प्राध्यापक डॉ. विश्वास चौहान को भी शाल व श्रीफल भेँट कर सम्मानित किया । श्रद्धेय भाऊ साहब भुस्कुटे स्मृति व्याख्यानमाला समिति की ओर से श्री रामभाऊ पातोण्डीकर को एक अभिनन्दन पत्र भेँट किया गया जिसका वाचन श्री रमेश दीक्षित ने किया । निश्चित रूप से
' सुभाषित परिमलः ' संस्कृत अनुरागियोँ के लिए अत्यंत उपयोगी पुस्तक सिद्ध होगी । 30 रुपये की सहयोग राशि पुस्तक के महत्व को देखते हुए कम ही जान पड़ती है । पुस्तक मेँ लगभग 250 सुभाषित संकलित हैँ जिनके हिन्दी अर्थ भी साथ ही दिए गए हैँ । पुस्तक का प्रकाशन टिमरनी की श्रद्धेय भाऊ साहब भुस्कुटे स्मृति व्याख्यानमाला समिति द्वारा किया गया है । पुस्तक प्राप्त करने के इच्छुक निम्नलिखित पतोँ पर सम्पर्क कर सकते हैँ ।
* श्री प्रकाश सोलापुरकर , सरस्वती उ.मा. आवासीय विद्यालय , शारदा विहार परिसर , केरवा बाँध मार्ग , भोपाल ( म.प्र.) दूरभाष-9425029512 * डॉ. अतुल गोविन्द भुस्कुटे गढ़ी , टिमरनी , जिला - हरदा ( म.प्र.)
दूरभाष -
07573-23 0283
* बी/9 , स्प्रिँग फिल्ड टॉवर वीर सावरकर नगर, गंगापुर मार्ग , नासिक , पिन-422093
दूरभाष -
0253-2342168
- रमेश दीक्षित , टिमरनी

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