सोमवार, 12 अक्तूबर 2009

नोबल पुरुस्कार

मेरी दृष्टि से वेँकटरामन चन्द्रशेखर को नोबल पुरुस्कार मिलना हम भारतीयोँ के लिए गर्व करने की बात कतई नहीँ लगती । क्या हम केवल इसलिए गर्व करेँ क्योँकि वह भारतीय मूल के हैँ ? यह बात गले नहीँ उतरती । दरअसल हमारे लिए तो यह शर्म की बात होनी चाहिए कि एक योग्य प्रतिभा को हम अपने देश मेँ रोक नहीँ सके । उन्हेँ देश मेँ ही अनुसंधान की आवश्यक सुविधाएँ उपलब्ध नहीँ करा सके । और जब अमेरिका जाकर उन्होँने अपनी प्रतिभा के झण्डे गाड़े तो हम अपने मुँह मियाँ मिट्ठू बनकर गर्व कर रहे हैँ । इसके पूर्व भी जिन भारतीय मूल के वैज्ञानिकोँ को नोबल पुरुस्कार मिला था उनके साथ भी यही परिस्थिति थी । दूसरी ओर अपनी मातृभूमि को छोड़कर अन्य देशोँ मेँ जाकर बसने और उन देशोँ के लिए उत्कृष्ट कार्य करने वाले निन्दा और धिक्कार के अधिकारी होकर कृतघ्न लोगोँ की श्रेणी मेँ ही रखे जाएँगे । वाल्मीकि रामायण मेँ भगवान राम ने लक्ष्मण से कहा था - " अपि स्वर्णमयी लंका , न मे लक्ष्मण रोचते । जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी । अस्तु ।

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