चीन दुनिया को दिखाने के लिए तो साम्यवादी है पर वास्तव मेँ वह घोर साम्राज्यवादी है । तिब्बत को हड़पने तथा भारत की हजारोँ वर्गमील भूमि पर कब्जा करने के बाद अब उसकी नीयत लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश को हथियाने की है । इसके लिए उसने पहले तो लद्दाख की हवाई और स्थल सीमाओँ का उल्लंघन कर घुसपैठ की तथा वहाँ पत्थरोँ पर जगह - जगह लाल रंग से चीन लिख दिया और बाद मेँ प्रधान मंत्री डॉ मनमोहन सिँह की अरुणाचल प्रदेश यात्रा पर बेशर्मी से खुल्लमखुल्ला ऐतराज किया । और विदेशी मूल के इशारोँ पर कठपुतली बना हमारा स्वाभिमानशून्य , रीढ़विहीन नेतृत्व हाथ पर हाथ धरे बैठा रहा । हमारे विदेश मंत्री एस.एम.कृष्णा ने बकरी की तरह मिमियाते हुए मरियल आवाज़ मेँ कड़ा विरोध व्यक्त करके अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ ली । पर सचमुच मेँ आम देशभक्त नागरिक का आहत मन इससे संतुष्ट नहीँ हुआ । वास्तव मेँ इस अवसर पर राष्ट्रीय स्वाभिमान और दृढ़ता का परिचय देते हुए सिँह गर्जना की आवश्यकता थी । भारत सरकार को चाहिए था कि वह ईँट का जवाब पत्थर से देते हुए अपनी हड़पी हुई जमीन को छुड़ाने के लिए आवश्यक कार्यवाही का बेखौफ़ ऐलान करती , चीन की नीयत को दुनिया के सामने उजागर करती , तिब्बत की आजादी के लिए विश्व समुदाय के सामने भारत का स्पष्ट पक्ष रखती , कैलाश मानसरोवर पर भारत के जन्मसिद्ध अधिकार का दावा करते हुए उनकी मुक्ति के लिए प्रयास शुरू करने की घोषणा करती और चीन की आपत्तियोँ को खारिज कर इसे भारत की एकता , अखण्डता और सम्प्रभुता पर प्रहार बताते हुए उसकी हरकतोँ को भड़काने वाली कार्यवाही कहती । मगर रमेश , तू ये अपेक्षाएँ आख़िर किससे कर रहा है ? वहाँ तेरी कौन सुनने वाला है ? किसी के कान पर जूँ रेँगने वाली नहीँ । क्योँ तू अपना समय बर्बाद कर रहा है । बन्द कर यह लिखना लिखाना । ...
लेकिन विचारोँ के बीज वातावरण मेँ बोए जाते हैँ और अनुकूल परिस्थियोँ मेँ वे पल्लवित और पुष्पित होकर मनोनुकूल फल प्रदान करते हैँ । इसलिए तू अपने अन्त:करण मेँ उठने वाले विचारोँ को वातावरण मेँ बोए जा बिना इस बात की परवाह किए कि उन विचारोँ को भला कौन पढ़ेगा ? बात आगे बढ़ाता हूँ । तब मैँ बच्चा था पर मुझे अच्छी तरह याद है । राष्ट्रीय स्वाभिमान से ओतप्रोत वातावरण हमारे संयुक्त परिवार की विशेषता थी । राष्ट्रीय मुद्दोँ पर चर्चाएँ हुआ करती थीँ । मैँ उन चर्चाओँ को रुचि लेकर बड़े ध्यान से सुना करता था । चीन के तत्कालीन प्रधानमंत्री चाऊ एन लाई भारत आए थे । पं. जवाहरलाल नेहरू ने उनके सम्मान मेँ एक स्वागत समारोह का आयोजन किया था । इस कार्यक्रम मेँ अर्धनग्न लड़कियोँ के द्वारा लगभग अश्लील कहा जा सकने योग्य एक बेहूदा नृत्य प्रस्तुत किया गया था । उस समय सिनेमा टॉकीज़ोँ मेँ फिल्म शुरू होने से पहले भारत सरकार के दृश्य एवं प्रचार निदेशालय द्वारा राष्ट्रीय महत्व के आयोजनोँ की न्यूज़ रील दिखाई जाती थी । टिमरनी की टॉकीज़ मेँ मैँने उक्त कार्यक्रम की न्यूज़ रील देखी है । इस भौँडे नृत्य को देखकर तब चाऊ एन लाई ने अवश्य ही यह सोचा होगा कि इस देश के राष्ट्रीय नेताओँ की रुचि राष्ट्र निर्माण की बजाए राग रंग मेँ है । शायद यही वजह थी कि चीनी - हिन्दी , भाई - भाई के नारे लगाने वाले चीन ने उसी भाई की पीठ मेँ छुरा घोँपते हुए उस पर एक अनावश्यक युद्ध थोपकर हजारोँ वर्गमील भूमि हथिया ली । आश्चर्य है कि परमाणु हथियारोँ से सम्पन्न देश को दबाने की कोशिशेँ आखिर कोई देश कैसे कर सकता है ? क्या हमारी अग्नि और पृथ्वी मिसाइलेँ केवल शोभा की सुपारी हैँ ? यदि इन सबका उपयोग हमारे राष्ट्र की एकता , अखण्डता और सम्प्रभुता की रक्षा करने के लिए नहीँ हुआ तो फिर इनके होने का आखिर क्या अर्थ है ? क्योँ नहीँ कोई देश हमारे इन अत्याधुनिक हथियारोँ से खौफ़ खाता ? क्या ये केवल अजायबघर की वस्तुएँ बनकर रह जाएँगी ? क्या इनका उपयोग केवल 26 जनवरी की परेड मेँ प्रदर्शन तक ही सीमित रह जाएगा ? शायद ये सब सच नहीँ हैँ । हमारे हथियार तो हर प्रकार से सक्षम हैँ परन्तु कमजोरी हमारे अक्षम नेतृत्व की है । उसमे दृढ़ इच्छाशक्ति का नि:तान्त अभाव है । हमारी विदेश नीति ढुलमुल और अस्पष्ट है । अब समय आ गया है जब कि हमेँ अपनी विदेश नीति मेँ राष्ट्रीय स्वाभिमान , सुरक्षा , सम्प्रभुता और अखण्डता को सर्वोच्च प्राथमिकता देना चाहिए । जबसे नेपाल मेँ राजनीतिक हालात बदले हैँ वहाँ भारत विरोधी गतिविधियोँ मेँ तेजी आ गई है । नेपाल के रास्ते नकली नोट भारत मेँ अर्थ व्यवस्था को छलनी कर रहे हैँ और सरकार आश्चर्यजनक चुप्पी के साथ हाथ पर हाथ धरे बैठी है । अब उसी नेपाल के चीन समर्थक प्रधान मंत्री माधव कुमार नेपाल ने चीन से आग्रह किया है कि वह तिब्बत की राजधानी ल्हासा से काठमाण्डू तक रेल मार्ग का निर्माण करे । वास्तव मेँ यह रेलमार्ग भविष्य मेँ भारत के लि खतरा बन सकता है इसलिए नेपाल के इस प्रस्ताव का पुरजोर विरोध होना चाहिए । दरअसल भारत चारोँ ओर से विरोधियोँ और दुश्मनोँ से घिर चुका है अत: हमेँ अपनी सुरक्षा को ध्यान मेँ रखते हुए अपनी कूटनीति मेँ आवश्यक बदलाव करना होगा । अपने परमाणु हथियारोँ और मिसाइलोँ का कूटनीतिक उपयोग करके पड़ोसी देशोँ पर अपनी धाक कायम करनी होगी , मिमियाने के स्थान पर अपनी भाषा मेँ परमाणु शक्ति सम्पन्नता का आभास कराना होगा तभी हम शान्ति से रह पाएँगे । ॥ भारत माता की जय ॥
बुधवार, 14 अक्तूबर 2009
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