बुधवार, 12 अगस्त 2009

नीँव के पत्थर

नीँव के पत्थर बहुत गहरे मेँ दफ़नाए गए ।
ख़ूबसूरत संगे मरमर सामने पाए गए ।
आदमी के खून से थे हाथ जिनके तरबतर ,
बाद मे वे लोग भी निर्दोष ठहराए गए ।
शान्ति के प्रस्ताव पर हस्ताक्षर जब हो चुके ,
इस खुशी मेँ कुछ कबूतर भूनकर खाए गए ।
जिन वफ़ादारोँ के बलबूते पे हम आगे बढ़े ,
चन्द टुकड़े डालकर वे लोग बहकाए गए ।
एक जयचंद जा मिला ग़ोरी मुहम्मद से गले ,
आज फिर इतिहास के सोपान दोहराए गए ।
ये सियासत , ये हुकूमत और ये जम्हूरियत ,
आड़ मेँ इनकी हमेशा जुल्म बरसाए गए ।
एक प्यारा गाँव जलकर राख की ढेरी हुआ ,
तब शहर से अग्निशामक यंत्र भिजवाए गए ।

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