दिल मेँ किसी के जो कभी दाख़िल नहीँ रहे ।
चैन औ सुकून भी उन्हेँ हासिल नहीँ रहे ।
करते हैँ खून भी मग़र सर पे नहीँ लेते ,
पहले की तरह आज के क़ातिल नहीँ रहे ।
सेहरा हमेशा जीत का उनके ही सिर बँधा ,
दुश्मन की हरक़तोँ से जो ग़ाफ़िल नहीँ रहे ।
तूफान की लहरोँ मेँ कटी ज़िन्दगी तमाम ,
अपने नसीब मेँ कभी साहिल नहीँ रहे ।
नफ़रत से , हिक़ारत से ही देखा गया उन्हेँ ,
कुछ लोग कभी प्यार के क़ाबिल नहीँ रहे ।
लगती हैँ ठोकरेँ , कभी पड़ता है भटकना ,
इंसान के आगे अग़र मंज़िल नहीँ रहे ।
कल तक जो इन्क़लाब के हामी थे , क्या हुआ ?
क्योँ आज वही भीड़ मेँ शामिल नहीँ रहे ।
कैसे , कहाँ , कब , कौन , क्या , कितना या किसलिए ,
ऐसे सवाल आजकल मुश्क़िल नहीँ रहे ।
इतना जलील दोस्तोँ ने कर दिया हमेँ ,
दुश्मन भी कभी इस क़दर जाहिल नहीँ रहे ।
बस मेँ नहीँ है आजकल अपने , ये क्या हुआ ?
शायद हमारे पास अब ये दिल नहीँ रहे ।
जो भी मिले हैँ आज तक आधे या अधूरे ,
बरसोँ से यहाँ लोग मुक़म्मिल नहीँ रहे ।
बुधवार, 2 सितंबर 2009
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