दर्द जिस दिन ज़िन्दगी का आसरा हो जाएगा ।
आदमी उस दिन न जाने क्या से क्या हो जाएगा ।
दर्द का हद से गुज़रना , कह गए ग़ालिब 'दवा' ,
दर्द कब गुज़रेगा हद से ? कब दवा हो जाएगा ।
कौन से धोखे मेँ बैठे हैँ हमारे रहनुमा ,
जाग जाएँ वरना कुछ अच्छा बुरा हो जाएगा ।
आग और बारूद मेँ है बस जरा सा फ़ासला ,
मेल होते ही हिरन सारा नशा हो जाएगा ।
आदमी की भूख वादोँ से नहीँ मिट पाएगी ,
ग़र निभाए तो ग़रीबोँ का भला हो जाएगा ।
एक ठोकर की ज़रूरत है ज़माने के लिए ,
देख लेना तू ज़माने का ख़ुदा हो जाएगा ।
सोमवार, 14 सितंबर 2009
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
4 टिप्पणियां:
कौन से धोखे मेँ बैठे हैँ हमारे रहनुमा ,
जाग जाएँ वरना कुछ अच्छा बुरा हो जाएगा ।
sahi baat ,sunder rachana
दर्द का हद से गुज़रना , कह गए ग़ालिब 'दवा' ,
दर्द कब गुज़रेगा हद से ? कब दवा हो जाएगा ।
लाजवाब शुभकामनायें इस सुन्दर रचना के लिये आभार्
आग और बारूद मेँ है बस जरा सा फ़ासला ,
मेल होते ही हिरन सारा नशा हो जाएगा ।
वाह...बेहतरीन...कमाल की ग़ज़ल कही है आपने...दाद कबूल करें...
नीरज
Likhte rahiye.Shubkamnayen.
एक टिप्पणी भेजें