पर उपदेश कुशल बहुतेरे अपना हृदय टटोलेँ ॥
औरोँ के अवगुण देखेँ , पर अपनी चादर धो लेँ ॥
कवि तो एक मनीषी होता , शब्द , अर्थ का ज्ञाता ,
स्वयं प्रेरणा बनकर वह दुनिया को राह दिखाता ।
हम कवि हैँ , यह याद रखेँ और सोच समझकर बोलेँ ॥ हल्की बातेँ ही कविता का विषय बनेँ , अनुचित है ।
शाश्वत रचनाएँ लिखना ही कवि के लिए उचित है ।
विस्तृत गगन कल्पना का है, दूर - दूर तक डोलेँ ॥
अपनी लघुता को स्वीकारेँ , यह साहस दिखलाएँ ।
अहं भाव को तजकर ही , कुछ सीखेँ या सिखलाएँ ।
निज कमियोँ को कभी दूसरोँ के ऊपर न ढोलेँ ॥
जग जाहिर है , ढोल दूर के होते बड़े सुहाने ।
पास अगर आ जाएँ तो लगता है मारेँ ताने ।
साहित्यिक रस की धारा मेँ कटुता का विष घोलेँ ॥
स्वार्थ लिप्त व्यवहार नेह की नौका सदा डुबोते ।
श्रद्धा , त्याग , समर्पण ही पर्याय प्रेम के होते ।
या तो उनको मीत बना लेँ , या फिर उनके हो लेँ ॥
कवि होना है कृपा राम की , यह अनुभूति हमारी ।
बनते नहीँ , सदा पैदा होते हैँ क़लम पुजारी ।
बरसे बारह मास यहाँ रस , तन - मन सहज भिँगो लेँ ॥
सच्ची कविता निसृत होगी उस दिन अन्तर्मन से ।
पर दु:ख कातर होकर जिस दिन आँसू बहेँ नयन से ।
उन्हीँ आँसुओँ की स्याही मेँ अपनी क़लम डुबो लेँ ॥
प्रेम पगा धागा टूटे तो जुड़ना ही मुश्किल है ।
अरे खिलौना मिट्टी का है , दिल तो आख़िर दिल है ।
करना कठिन , सरल है कहना-मन की गाँठेँ खोलेँ ॥
शुक्रवार, 25 सितंबर 2009
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2 टिप्पणियां:
nishchit rup se bahut hi sundar kavita.....sabhi logo ko prerna deti hu..kavi ko uske kartavya battati hue....
पर उपदेश कुशल बहुतेरे अपना हृदय टटोलेँ ॥
औरोँ के अवगुण देखेँ , पर अपनी चादर धो लेँ ॥
कवि तो एक मनीषी होता , शब्द , अर्थ का ज्ञाता ,
स्वयं प्रेरणा बनकर वह दुनिया को राह दिखाता ।
बहुत सुन्दर रचना है बधाई
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