गुरुवार, 17 सितंबर 2009

होँगे

ख़ूने दिल से जो मेरे आपने बाले होँगे ।
उन चिराग़ोँ से नशेमन मेँ उजाले होँगे ।
दिल मेँ तूफान मग़र होँटोँ पे जुंबिश न हुई ,
हमने कैसे यहाँ अरमान निकाले होँगे ।
तेरे दीदार की हसरत मेँ तो ये भी होगा ,
एक दिन हम किसी क़ातिल के हवाले होँगे ।
यक़ीन कर तो लिया था मग़र न ये जाना ,
उजले कपड़ोँ मेँ छुपे दिल बड़े काले होँगे ।
मंज़िलेँ जब मेरी आँखोँ के सामने होँगी ,
राह पुरख़ार , मेरे पाँव मेँ छाले होँगे ।
जब भी आएगी क़यामत की घड़ी दुनिया मेँ ,
ज़िन्दग़ी हम भी तेरे चाहने वाले होँगे ।
दास्ताँ अपनी सुनाऊँ तो मेरा दावा है ,
छलके - छलके तेरी आँखोँ के पियाले होँगे ।
तूने ख़त और क़िताबत के लिए ही शायद ,
ये कबूतर बड़े अरमान से पाले होँगे ।

2 टिप्‍पणियां:

Mithilesh dubey ने कहा…

बहुत ही उम्दा गजल। इस लाजवाब गजल के लिए बहुत-बहुत बधाई

नीरज गोस्वामी ने कहा…

दिल मेँ तूफान मग़र होँटोँ पे जुंबिश न हुई ,
हमने कैसे यहाँ अरमान निकाले होँगे ।

तूने ख़त और क़िताबत के लिए ही शायद ,
ये कबूतर बड़े अरमान से पाले होँगे

वाह..वा...क्या शेर कहे हैं जनाब...वाह...इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए दिली दाद कबूल करें...
नीरज