शनिवार, 19 सितंबर 2009

विचारोँ मेँ

कुछ बातेँ ऐसी होती हैँ जो की जाएँ इशारोँ मेँ ।
यह ख़ूबी पाई जाती है बस कुछ ही फ़नकारोँ मेँ ।
क़ागज और क़लम से अपना रिश्ता कुछ - कुछ ऐसा है ,
जैसा रिश्ता है सदियोँ से डोली और कहारोँ मेँ ।
आँखेँ शर्मशार हैँ अपनी , लज्जा से सिर झुका हुआ ,
जब से देखा है गीतोँ को बिकते हुए बजारोँ मेँ ।
पीछे से कुछ ख़ास आदमी अपना हिस्सा ले भागे ,
लोग लगे हैँ उम्मीदोँ की कितनी बड़ी क़तारोँ मेँ ।
सबसे पहले इस दुनिया को कौन मिटाएगा देखेँ ,
होड़ लगी है आसपास के परमाणु हथियारोँ मेँ ।
जिनको नहीँ भरोसा अपनी मेहनत , अपने बाज़ू पर ,
गिनती होती है उन सबकी मजबूरोँ , लाचारोँ मेँ ।
साथ अग़र मिल जाए तुम्हारा फिर क्या फ़िक्र ज़माने की ,
ख़ूब लगेगा फिर मेरा दिल उजड़े हुए दयारोँ मेँ ।
शायद पूरब के खेतोँ मेँ बरसा है पहला पानी ,
मिट्टी की सोँधी सी ख़ुशबू आने लगी बयारोँ मेँ ।
हर पत्थरदिल को पिघला दे ऐसी ताक़त होती है ,
सावन की ठण्डी - ठण्डी सी मस्ती भरी फुहारोँ मेँ ।
मेँढक बनकर किसी कुएँ मेँ कब तक गोता खाओगे ?
कुछ तो परिवर्तन ले आओ दक़ियानूस विचारोँ मेँ ।

2 टिप्‍पणियां:

शशि "सागर" ने कहा…

bahut khooob
bahut hee sateek aur sadhee hui rachna ....har sher kamal ka hai

शशि "सागर" ने कहा…

bilkul sadhee hui rachna