शुक्रवार, 25 सितंबर 2009

मन की गाँठेँ खोलेँ

पर उपदेश कुशल बहुतेरे अपना हृदय टटोलेँ ॥
औरोँ के अवगुण देखेँ , पर अपनी चादर धो लेँ ॥
कवि तो एक मनीषी होता , शब्द , अर्थ का ज्ञाता ,
स्वयं प्रेरणा बनकर वह दुनिया को राह दिखाता ।
हम कवि हैँ , यह याद रखेँ और सोच समझकर बोलेँ ॥ हल्की बातेँ ही कविता का विषय बनेँ , अनुचित है ।
शाश्वत रचनाएँ लिखना ही कवि के लिए उचित है ।
विस्तृत गगन कल्पना का है, दूर - दूर तक डोलेँ ॥
अपनी लघुता को स्वीकारेँ , यह साहस दिखलाएँ ।
अहं भाव को तजकर ही , कुछ सीखेँ या सिखलाएँ ।
निज कमियोँ को कभी दूसरोँ के ऊपर न ढोलेँ ॥
जग जाहिर है , ढोल दूर के होते बड़े सुहाने ।
पास अगर आ जाएँ तो लगता है मारेँ ताने ।
साहित्यिक रस की धारा मेँ कटुता का विष घोलेँ ॥
स्वार्थ लिप्त व्यवहार नेह की नौका सदा डुबोते ।
श्रद्धा , त्याग , समर्पण ही पर्याय प्रेम के होते ।
या तो उनको मीत बना लेँ , या फिर उनके हो लेँ ॥
कवि होना है कृपा राम की , यह अनुभूति हमारी ।
बनते नहीँ , सदा पैदा होते हैँ क़लम पुजारी ।
बरसे बारह मास यहाँ रस , तन - मन सहज भिँगो लेँ ॥
सच्ची कविता निसृत होगी उस दिन अन्तर्मन से ।
पर दु:ख कातर होकर जिस दिन आँसू बहेँ नयन से ।
उन्हीँ आँसुओँ की स्याही मेँ अपनी क़लम डुबो लेँ ॥
प्रेम पगा धागा टूटे तो जुड़ना ही मुश्किल है ।
अरे खिलौना मिट्टी का है , दिल तो आख़िर दिल है ।
करना कठिन , सरल है कहना-मन की गाँठेँ खोलेँ ॥

2 टिप्‍पणियां:

vivek pandey ने कहा…

nishchit rup se bahut hi sundar kavita.....sabhi logo ko prerna deti hu..kavi ko uske kartavya battati hue....

निर्मला कपिला ने कहा…

पर उपदेश कुशल बहुतेरे अपना हृदय टटोलेँ ॥
औरोँ के अवगुण देखेँ , पर अपनी चादर धो लेँ ॥
कवि तो एक मनीषी होता , शब्द , अर्थ का ज्ञाता ,
स्वयं प्रेरणा बनकर वह दुनिया को राह दिखाता ।
बहुत सुन्दर रचना है बधाई